काँटे चुन-चुन निकालता है कोई।
हर घड़ी हर सिम्त नजर मुझ पर गड़ी,
कि जैसे दूध उबालता है कोई।
आँच मुझ तलक न आने देता कभी,
जब भी बिखरूँ सँभालता है कोई।
हद तक हँसने की हँसता है जालिम,
गम छुपा दिल में पालता है कोई।
पीकर गरल खुशी-खुशी जग का दिया,
जामे मस्तियाँ ढालता है कोई।
दुख के सायों से उबारकर मुझको,
खुशियाँ मुझ तक उछालता है कोई।
हर सच्चाई से वो वाकिफ 'सीमा',
ये सच है या मुगालता है कोई।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ. प्र. )
पुस्तक 'कलम किरण' से
No comments:
Post a Comment