वर बढ़े जो पथ विनय का...
वर बढ़े जो पथ विनय का,
उस सरल इंसान की जय।
वक्त की परिमल सँजोए,
उस विरल इंसान की जय।
दो दिलों को नाथकर जो,
प्रेम-सुर में ढालता है।
ढाल बन जो सत्य की नित,
खाक खल पर डालता है।
जो तड़पता और के हित,
उस विकल इंसान की जय।
बल बने जो निर्बलों का,
घाव पर मरहम लगाए।
दे निकाला आँसुओं को,
हास के मंडप सजाए।
जो लुटा दे प्राण परहित,
उस सबल इंसान की जय।
पय पिलाए जो तृषित को।
पुष्प कर्दम में खिलाए।
बन सहारा गैर का जो,
आस हर मरती जिलाए।
हर दिखावे से परे जो,
उस असल इंसान की जय।
शीश पर आशीष प्रभु का,
ले बढ़े जो साथ सबका।
प्रेम-बल से जीत कर दिल,
दे झुका जो माथ सबका।
हर हुनर-गुण पास जिसके,
उस कुशल इंसान की जय।
बुद्धि-कौशल से सदा जो,
काम हर आसान करता।
हारते हर आर्त जन के,
हौसलों में जान भरता।
ला रहा नित नव्यता जो,
उस नवल इंसान की जय।
वर बढ़े जो पथ विनय का,
उस सरल इंसान की जय।
© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
साझा संग्रह 'साहित्य सुमन' में प्रकाशित
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