आज जो पीछे हटी तो,
लक्ष्य फिर कैसे वरेगी ?
लक्ष्य च्युत गर हो गयी तो,
चाँद पर पग क्या धरेगी ?
हौसलों को पंख देकर,
छू सुते, अब मुक्त अंबर।
कह रहा क्या कौन उसको,
सोचता क्या कुछ दिगंबर ?
बात जो सबकी सुनी तो,
हानि अपनी ही करेगी।
मोह तज इन आभरण का
ये महज तन के लिए हैं।
ज्ञान की नव कंदराएँ,
खुल रही तेरे लिए हैं।
चूम लेगी भाल दुनिया,
पाँव जब भू पर धरेगी।
चल रहे हैं मेघ हरदम,
चाँद काँधे पर टिकाए।
स्वेद-जल से सींच जग को,
बीहड़ों में गुल खिलाए।
खुद अगर रोती रही तो,
कष्ट क्या जग के हरेगी।
खोज ला हर गुप्त धन वो,
जो बना तेरे लिए है।
प्रार्थना है ईश से, शुभ
कामना तेरे लिए है।
जान दे जो जिंदगी को,
जिंदगी उसको वरेगी।
खुश रहे हर हाल में तो,
रंज मन से दूर होंगे।
धीरता धारित हृदय में,
क्षण सुखद भरपूर होंगे।
मानसर में गुल खिलेंगे,
हर कदम खुशबू झरेगी।
आज जो पीछे हटी तो,
लक्ष्य कह कैसे वरेगी ?
© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
'गीत शतक' से
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