Saturday, 30 November 2024

मोहे छटा अनूप...

कर्ण श्रवण घर-घर करें,  घर-घर गूँजे नाद।
रामचरित मैं भी लिखूँ,   दो प्रभु आशीर्वाद।।

चैत्र मास की तिथि नवम्, लिया राम अवतार।
कौशल्या की कोख से,    उपजा जग-कर्त्तार।।

श्याम शिला निर्मित वपु,      मोहे छटा अनूप।
बरबस मन वश में करे, प्रभु का बाल स्वरूप।।

जलमय संकुल मेघ सम, श्याम बरन प्रभु राम।
मन पुष्पित-पुलकित करें,  सरस-बरस घनश्याम।।

कंठा कंगन करधनी, केसर कुंकुम भाल।
उर शोभित कौस्तुभमणि, गल वैजंतीमाल।।

शोभित पैजनियाँ छड़ा, पाँव महावर लाल।
स्वर्ण मुकुट मस्तक फबे, कुंडल पदिक कमाल।।

कोटि प्रभाएँ सूर्य की, आभा मंडित रूप।
नैना मादक रसभरे,    भरे सभी मनकूप।।

भव्य रूप निर्मल छटा, नित्य नव्य अव्यक्त।
नैना अनझिप कर रहे, भाव दिव्य अभिव्यक्त।।

राम नाम का ध्यान ही,   करता बेड़ा पार।
बंधन जिसके हम बँधे, वही मुक्ति आधार।।

डोर तुम्हारे हाथ प्रभु, आर करो या पार।
जगत हमारा पालना, तुम हो पालनहार।।

पलकों पर पग रख प्रभो, उतरो दिल के द्वार।
पग प्रक्षालन कर प्रथम,      कर लूँ द्वाराचार।।

दिशाबद्ध हो योजना, धर्मबद्ध हों काम।
बढ़े चलो सन्मार्ग पर, भली करेंगे राम।।

राम सरिस हो आचरण, राम सरिस हो त्याग।
मिटें तामसी वृत्तियाँ,      जागें जग के भाग।।

किस मुँह से बरनन करूँ, महिमा तेरी नाथ।
नेति-नेति कहता हृदय,  नवा चरन में माथ।।

तेरा-मेरा मेल क्या,       तू दाता मैं दीन।
तू सबका सिरमौर है, मैं लुंठित मतिहीन।।

मनके मन के गुँथ सभी, बने सुघड़तम हार।
जुड़े रहें प्रभु आपसे,          मर्यादा के तार।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ. प्र. )
दोहा संग्रह "किंजल्किनी" से
फोटो गूगल से साभार

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