छिटकी नभ में चाँदनी, कातिक पूनम रात।
काशी के गलियार में, झिलमिल दीपक-पाँत।।०१।।
देव दिवाली आज है, कातिक पूनम रात।
करते भू पर देवता, अमरित की बरसात।।०२।।
देता सुर को त्रास था, करता पाप अनंत।
त्रिपुरारि कहलाए शिव, किया दुष्ट का अंत।।०३।।
भव्य कलेवर में दिपे, काशी नगरी आज।
देव मुदित आशीष दें,गदगद संत समाज।।०४।।
त्रिपुरासुर का अंत कर, दिया इंद्र को राज।
आज मुदित मन झूमता, सारा देव समाज।।०५।।
पावन गंगा नीर में, कर कातिक स्नान।
देव दिवाली देवता, करें दीप का दान।।०६।।
छाई है अद्भुत छटा, दमक रहे सब घाट।
देव दरस की लालसा, जोहें रह-रह बाट।।०७।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
फोटो गूगल से साभार
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