खोल भी दो अब अधर द्वय।
है तुम्हें किसका कहो भय ?
इस तरह मत चुप रहो तुम।
बात हर खुलकर कहो तुम।
हो सही यदि सत्य में तुम,
क्यों गलत कुछ भी सहो तुम।
बढ़ चलो पथ पर अभय हो,
शुद्ध तन-मन ले तपोमय।
लक्ष्य को अपने वरो तुम।
जग कहे क्या मत डरो तुम।
मुश्किलें पथ में मिलें तो,
सामना डटकर करो तुम।
है तुम्हें अधिकार तुम पर,
कर रहे क्यों घोट मन क्षय ?
वक्त पल-पल बीतता है।
व्यर्थ जीवन रीतता है।
बढ़ चले जो कस कमर नित,
हर समर वो जीतता है।
सत्य का दामन गहे जो,
अंततः पाता वही जय।
सत्य के पथ पर चले जो,
हार कर भी जीतता है।
भर तिजोरी नर अनय से,
हर कदम पर रीतता है।
दंभ भरता झूठ का जो,
हार उसकी जान लो तय।
फल मधुर मिलता उसी को,
काम जो निष्काम करता।
लूटता हक और का जो,
जिंदगी भर दाम भरता।
मर मिटे सेनानियों की,
सुन चतुर्दिक गूँजती जय।
© सीमा अग्रवाल, मुरादाबाद ( उ.प्र.)
साझा संग्रह 'साहित्य सुमन' से
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