Saturday 5 November 2016

मुझे संग बचपन के जीने दो

जैसे जीती रही हूँ अब तक
मुझे बैसे ही अब भी जीने दो
ख्बाब दिखाकर खुशियों के
तिल- तिल न मुझे यूँ मरने दो

ना छलकाओ प्रेम का आसव
ना ये अमृत-कलश ढुलकाओ
रहने दो प्रभुवर करुणा अपनी
मुझे गरल ही गमों का पीने दो

नहीं कामना करूँ अब सुख की
दुख ही अंतरंग संबंधी अब मेरे
बार- बार सीवन उधड़े जिनकी
वे जख्म ही फिर- फिर सीने दो

आसमां छूने की ललक में मैंने
प्रगति के नित नव सोपान चढ़े
बड़प्पन में पर सुख नहीं कोई
मुझे बचपन के संग ही जीने दो

- सीमा

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