Thursday 10 November 2016

गम ही लिखे जब भाग्य में मेरे ---

गम ही लिखे जब भाग्य में मेरे
कैसे हँसी लबों पर लाऊँ !
सच्चाई पे परदा डाल दूँ  कैसे
भाग्य को कैसे झुठलाऊँ !

हँसी- ठिठोली करूँ गर कोई
वो भी किसी के मन ना भाए
सिमट रहूँ गर अपने तक ही
तो भी तो जग ये बात बनाए
               दरक रहा कुछ मन के भीतर
               पर कतरे ये किसको दिखलाऊँ !

चिरसंगिनी है उदासी तो मेरी
भला जुदा हो कैसे मन से मेरे
कवच- कुंडल सी चिपकी है
जन्म से ही यह तो तन से मेरे
                मुखौटा पहन खुशी का पल भर
                कैसे इससे अपनी नजर चुराऊँ !

हुई संध्या, तम सघन घिर आया
संदेश न कोई पर प्रिय का आया
पथराईं आँखें पथ जोहते-जोहते
साया भी उसका नजर ना आया
                तनहा बिलखते मन- प्राणों को
                कैसे समझाऊँ, कैसे बहलाऊँ !

गम ही लिखे जब भाग्य में मेरे
कैसे हँसी लबों पर लाऊँ !
सच्चाई पे परदा डाल दूँ  कैसे
भाग्य को कैसे झुठलाऊँ !

- स+ई+म+आ

No comments:

Post a Comment