Monday 14 November 2016

मेरा तुम्हारा प्रेम सनातन---

निखर-निखर जाए रूप मेरा
मिले मुझे जो प्यार तुम्हारा
तुम्हीं तो हो श्रंगार प्रिय मेरा
तुम पर मैंने तन- मन वारा

वजूद नहीं था मेरा कोई
ना ही कोई रूप था मेरा
मैं धी एक लोंदा माटी का
तुमने ही तो मुझे संवारा

निरख तुम्हारी छवि दूर से
कली दिल की खिल जाए
रवि-कमलिनी,चाँद-कुमुदिनी
सा अनन्य है प्रेम हमारा

तुम जब चंदा बनकर आते
मैं मुग्धा चकोरी हो जाती
बिंब तुम्हारा कल्पित कर
झपट चुग लेती मैं अंगारा

जब तुम बरसते बादल से
मैं चातकी प्यासी हो जाती
बुझती तृषा युगों- युगों की
पी निर्मल स्नेह- जल धारा

मेरा तुम्हारा प्रेम सनातन
मैं हूँ राधा, तुम हो मोहन
रहें अभिन्न हम एक दूजे से
लाख उलाहनें दे जग सारा

- सीमा
१५/११/२०१६

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