अपना- अपना सब खाते हैं !
कुछ सूखा कुछ तर खाते हैं !
नसीब न जिन्हें दो जून की रोटी
आँसू पीते और गम खाते हैं !
हिंसक पशु भी उनसे अच्छे हैं
मासूमों पर जो कहर ढाते हैं !
खुदा की नजर से बच न सकेंगे
जुल्मी यहाँ जो बच जाते हैं !
नेक नीयत होती है जिनकी
वे दिल में गहरे उतर जाते हैं !
कैसे यकीं करे कोई उन पर
करके वादे जो मुकर जाते हैं !
क्या खुशी देंगे वे किसी को
पर खुशी देख जो जल जाते हैं !
देश न उन्हें कभी माफ करेगा
जिनके विदेशों में खाते हैं !
चुप कर 'सीमा' बोल ना ज्यादा
सच को यहाँ सब झुठलाते हैं !
- सीमा
No comments:
Post a Comment