तुम आराध्य, मैं एक पुजारिन
तुम ममभाग्य,मैं एक अभागिन
तुम बिन अब मेरा ठौर कहाँ
तुम सा जग में कोई और कहाँ
दर तक तुम्हारे आ न सकी तो
एक झलक तुम्हारी पा न सकी तो
तड़पूँगी जनम- जनम
आस मिलन की छूटी जिस दिन
अलविदा कह जग को उस दिन
फिर- फिर जन्मूँगी, तुम्हें खोजूँगी
बीज नेह के मन में रोपूँगी
फिर भी तुमको पा न सकी तो
करीब तुम्हारे आ न सकी तो
भटकूँगी जनम- जनम
रहे सनातन अब ये जोड़ी
तुम रहो चंदा मैं बनूँ चकोरी
रोशन करोगे जब तुम जग सारा
मेरे मन का भी धुलेगा अंधियारा
मधुर स्मित की बलवती आस लिए
नजरों में अनबुझी इक प्यास लिए
निहारूँगी जनम- जनम
- सीमा
२७.१०.२०१६
No comments:
Post a Comment