आने से उसके आए बहार।
मौसम पे छा जाए निखार।
देख उसे हो शीत नपैत,
क्या सखि साजन ? ना सखि चैत।
नया उछाह, नवजीवन लाता।
साथ सभी के घुलमिल जाता।
घटे कभी ना उसकी साख।
क्या सखि साजन ? ना वैशाख।
आग बबूला सदा वह रहता।
पारा दिनभर चढ़ा ही रहता।
दिखाए बात- बात पर ऐंठ।
क्या सखि साजन ? ना सखि जेठ।
राहत का पैगाम वह लाए।
अब्र सा तपते मन पर छाए।
संग लाए खुशियों की बाढ़।
क्या सखि साजन ? ना आषाढ़।
तन मन का वह ताप मिटाए।
उस बिन अब तो रहा न जाए।
जाने कहाँ छुपा मनभावन !
क्या सखि साजन ? ना सखि सावन।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद.( उ.प्र. )
'चयनिका' से
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