Thursday 25 April 2024

किस्मत का अपनी खाते हैं...

अपनी किस्मत का खाते हैं।
कुछ सूखा कुछ तर खाते हैं।  

जुड़े जिन्हें  दो जून  न रोटी,
आँसू  पीते,   गम  खाते हैं।

कितने भूखे  फुटपाथों  पर,
तड़प-तड़प कर मर जाते हैं।

हिंसक पशु भी उनसे अच्छे, 
कहर  दीन पर जो  ढाते हैं।

कर्म निरत नित जीव जगत के,
दाना-तिनका चुग लाते हैं।

नीयत शुद्ध साफ हो जिनकी,
घर हर दिल में कर जाते हैं।

जोश-लगन-जज्बा हो जिनमें,
स्वर्ग  धरा  पर  ले आते हैं। 

करें  भरोसा  कैसे उन पर,
वादों से जो  फिर  जाते हैं।

चुप कर 'सीमा' बोल न ज्यादा
सच्चाई   सब   झुठलाते  हैं। 

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)

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