Thursday, 25 April 2024

सूर्य तम दलकर रहेगा...

सूर्य  तम  दलकर रहेगा।
हिम जमा गलकर रहेगा।

ज्ञान   से   अज्ञान   हरने,
दीप इक जल कर रहेगा।

लिप्त जो मिथ्याचरण में,
हाथ  वो मल कर  रहेगा।

कुलबुलाता नित नयन में
स्वप्न अब फल कर  रहेगा।

है फिसलती रेत जिसमें,
वक्त  वो टल  कर रहेगा।

तू दबा ले लाख मन में,
राज हर खुलकर रहेगा।

बोल कितने ही मधुर हों,
दुष्ट  तो  छल कर  रहेगा।

तू भला कर या बुरा कर,
कर्म हर फल कर रहेगा।

है धधकती आग जिसमें,
प्राण में  ढलकर रहेगा।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद.( उ.प्र.)

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