Thursday 18 April 2024

कभी लूडो कभी कैरम...

कभी लूडो कभी कैरम, कभी शतरंज से यारी।
कभी हो ताश की बाजी, सुडोकू भी लगे प्यारी।
कहीं लगता नहीं जब मन, इन्हीं से बस बहलता है,
हमें प्रिय खेल ये सारे, लगी है लत हमें भारी।

रखे हों पास में लड्डू, न ललचाए मगर रसना।
भले ही लार टपके पर, नहीं इक कौर भी चखना।
यही है पाठ संयम का, सदा कसना कसौटी पर,
नियंत्रण में परम सुख है, यही बस ध्यान तुम रखना।



© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

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