Friday 31 October 2014

मेरे गम के तम पर-----

मेरे गम के तम पर तेरी,
शुभ्र धवल मुस्कान !
चाँदनी बिखर जाती है,
ज्यों अँधेरी रात में !

स्वप्न सुनहरे आ ह्रदय में,
गम के बादल देते चीर !
कौंधती है बिजली रह रह,
ज्यों मौसम बरसात में ।

अरमाँ चाहत ख्वाब सभी,
ढक लेती गम की चादर !
छिप जाता माया का वैभव,
ज्यों निशा के गात में !

कह देता हर राज दिल का,
आँखों से बरसता पानी !
मिल जाता मर्म जीवन का,
ज्यों मुरझाए पात में !

सुधबुध बिसरा निज तन की,
बँध गया मन प्यार में उसके !
खुद बन्दी हो जाता भँवरा,
ज्यों आकर जलजात में !

-सीमा अग्रवाल

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