मुझे ही मुझसे छीन लिया तूने !
ए मन ! ये क्या कर दिया तूने !
आँखों में मेरी अश्क भर दिए
अधरों को मेरे सी दिया तूने !
विवेक को भी तो बख्शा न मेरे
संज्ञा शून्य उसे कर दिया तूने !
उखाड़ के मुझको मेरी जमीं से
क्यूं चाह को पंख दे दिया तूने !
रहने ही देता मुझे सीमा में मेरी
असीम से क्यूँ मिला दिया तूने !
- सीमा
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