Sunday 29 May 2016

ए चाँद रात भर कहाँ विरमाए-----

कितना पुकारा
तुम नही आए !
ए चाँद रातभर
कहाँ विरमाए !

जीती हूँ मैं तो
देख तुम्हें ही
तुम बिन कैसे
नींद आ जाए !

नीरव रजनी
सोई है जगती
तनहाई मेरी
मुझे ही डराए !

इतनी दूर बस
रहो तुम प्यारे
धवल चाँदनी
मुझ तक आए !

निशाकंत तुम
कलावंत तुम
रूप तुम्हारा
मन को लुभाए !

मिट जाए अगन
थकन भी सारी
आगोश में अपने
जो मुझे सुलाए !

जितना जग से
मिलता हलाहल
उतना संजीवन
मन तुझसे पाए !

विचरो स्वच्छंद
नील निलय में
तुम पर ना कोई
बादल मंडराए !

छलकें जो बूँदें
सुधारस भीनी
पलकें झपें मेरी
नींद आ जाए !

- सीमा

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