Friday 8 April 2016

मन प्यासा

मन प्यासा
तन लातूर हुआ
स्नेह- जल
कोसों दूर हुआ !

आस रही ना
कोई मन में
हर सपना
चकनाचूर हुआ !

मिलता कैसे
उससे ज्यादा
किस्मत को जितना
मंजूर हुआ !

हर ख्वाब
रिसता आँखों से
कैसा बदरंग
औ बेनूर हुआ !

रहम न आया
जरा भी मुझ पर
क्यों नसीबा
इतना क्रूर हुआ !

मस्त हैं सब
अपने- अपने में
कैसा जग का
दस्तूर हुआ !

अपने सुख में
भूला पर को
क्यों कोई इतना
मगरूर हुआ !

~ सीमा

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