भरी महफिल से मैं उठ चली !
मेरी उपस्थिति सबको खली !
खिलने को थी बेताब मगर
मुरझ गई मेरे दिल की कली !
बदली सी मैं घिर-घिर आई
झर-झर बरसी औ मिट चली !
पूछे कोई नाम पता गर मेरा
कह देना थी पगली मनचली !
सवेरा न कोई नसीब में मेरे
जीवन की मेरे साँझ ढली !
- सीमा
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