आई हूँ जग से ठोकर खाकर
हर भौतिक सुख वहीं गंवाकर
अब कोई उजली राह दिखाकर
हे प्रभु मेरे ! मुझ पर कृपा कर
मन भटका संसार- सुखों में
झुलस गया अंगार- दुखों में
हाथ न कुछ भी मेरे आया
पल भर में सब हुआ पराया
माँगू खाली हाथ फैला कर
हे प्रभु मेरे ! मुझ पर कृपा कर
आखिर कब तक धरूं मैं धीर
अब तो हर लो मन की पीर
बहुत अंधेरा है इस जग में
पग- पग ठोकर खाऊं मग में
आशा की एक किरण दिखाकर
हे प्रभु मेरे ! मुझ पर कृपा कर !
~ सीमा
No comments:
Post a Comment