Wednesday 20 April 2016

आई हूँ जग से ठोकर खाकर

आई हूँ जग से ठोकर खाकर
हर भौतिक सुख वहीं गंवाकर
अब कोई उजली राह दिखाकर
हे प्रभु मेरे ! मुझ पर कृपा कर

मन भटका संसार- सुखों में
झुलस गया अंगार- दुखों में
हाथ न कुछ भी मेरे आया
पल भर में सब हुआ पराया

माँगू खाली हाथ फैला कर
हे प्रभु मेरे ! मुझ पर कृपा कर

आखिर कब तक धरूं मैं धीर
अब तो हर लो मन की पीर
बहुत अंधेरा है इस जग में
पग- पग ठोकर खाऊं मग में

आशा की एक किरण दिखाकर
हे प्रभु मेरे ! मुझ पर कृपा कर !

तुझसे छिपा है क्या गम मेरा
हुआ ना कबसे मन में सवेरा
तमस का गहन वितान तना है
मन व्याकुल व्यथित उन्मना है

तपते मन की तृषा बुझाकर
हे प्रभु मेरे ! मुझपर कृपा कर

प्रीत की यहाँ पर जीत नहीं
कोई भी तो सच्चा मीत नहीं
रिश्तों में अब वह ताव नहीं
वह आदर,मान औ आब नहीं

मुझे सखा सम तू अपनाकर
हे प्रभु मेरे ! मुझपर कृपाकर

आतुर मम मन तव दर्शन को
छवि पर तेरी पुष्प वर्षण को
मैं तनहा नही, तू साथ है मेरे
सदा तेरा सिर पर हाथ है मेरे

दुनिया को तू ये सत्य बताकर
हे प्रभु मेरे ! मुझ पर कृपा कर

फँसी है कबसे मझधार में नैया
कैसे हो पार नहीं कोई खिवैया
बस दूर से अपना हाथ हिला दे
महामिलन की कोई राह सुझा दे

शरण में अपनी मुझे बुलाकर
हे प्रभु मेरे ! मुझ पर कृपाकर

सारी सारी रात जगें मेरी अँखियाँ
बस तेरी ही राह तकें मेरी अँखियाँ
किससे गम कह, करूं मन हलका
रहीं ना अब वो पहले सी सखियाँ

अब सदा को गहरी नींद सुलाकर
हे प्रभु वर मेरे ! मुझ पर कृपाकर

~~~ सीमा ~~~

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