Sunday 27 March 2016

गिरते अश्कों की लय पर मैंने ---

गिरते अश्कों की लय पर मैंने
गुनगुनाना सीख लिया है !
हिलमिल कर अब साथ गमों के
मुस्कुराना सीख लिया है !

बीत गए अब दिन वो मेरे,
अरमां जब मचला करते थे !
जिद्द में चाँद को छूने की, उफ !
कितना ये उछला करते थे !
         समझा बुझाकर मैंने इन्हें अब
         रस्ते पर लाना सीख लिया है !

बात-बात पर इन आँखों में
कितने आँसू भर आते थे !
बह न जाएँ बाढ़ में इनकी
अपने भी सब डर जाते थे !
          जन्म लेने से पहले ही इन्हें अब
          मैंने दफनाना सीख लिया है !

क्या हुआ जो संगी सुख मेरे
एक- एक कर नाता तोड़ चले !
क्या हुआ जो प्रस्तर मग के,
दिशा ही जीवन की मोड़ चले !
             हर राह पर अब बेखौफ मैंने
            कदम बढ़ाना सीख लिया है !

तपती आग में संघर्षों की
मन कुंदन आज बना मेरा
दुःख के बिषैले सर्पों बीच
जीवन-चंदन महका  मेरा
            पर्वत- सी मुश्किल को मैंने
            गले लगाना सीख लिया है !

हिलमिल कर अब साथ गमों के
मुस्कुराना सीख लिया है !
गिरते अश्कों की लय पर मैंने
गुनगुनाना सीख लिया है !
  
- डाॅ0 सीमा अग्रवाल                 

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