Wednesday, 10 September 2025

है निकट अवसान मेरा...

जानती हूँ आ रहा है, अब निकट अवसान मेरा।
देखती हूँ आँख भर कर,     छूटता दालान मेरा।
सोच-चिंता-त्रास-तड़पन,    साथ जो मेरे रहे हैं,
ले चलूँगी साथ सबको,     बाँध दो सामान मेरा।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद


पितृ पक्ष...

सोलह दिन इक साल में, पूजे जाते काग।
पुरखों के आशीष से, जागें सब के भाग।।

पूज्य पितर आसन गहो, स्वीकारो ये कव्य।
चोला मैला त्याग कर,  धारो जीवन नव्य।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

फोटो गूगल से साभार

Monday, 8 September 2025

महबुलिया के गीत...

पितरों के सम्मान हित, चली अनूठी रीत।
घर-घर गातीं बच्चियाँ, महबुलिया के गीत।
काँटों वाली शाख में, टाँकें चुन-चुन फूल।
दुहराएँ फिर से चलो,    वही पुरातन रीत।

© सीमा अग्रवाल
फोटो गूगल से साभार

Saturday, 6 September 2025

था नहीं आसान मुझको...


था नहीं आसान मुझको,
लिख रही जो गीत लिखना।
सीख पायी हूँ तुम्ही से,
हार पर भी जीत लिखना।

'ये उदासी के अँधेरे,
कुछ पलों में दूर होंगे।
जो करें अपमान तेरा,
मान उनके चूर होंगे।'
थाम कर तुमने सिखाया,
युद्ध को संगीत लिखना।

'खामियाँ हैं हर किसी में,

कौन है संपूर्ण जग में।'

तुम सदा ही सीख देते,

क्या रखा है दुश्मनी में।

थे तुम्ही जिसने सिखाया,

शत्रु को भी मीत लिखना।

© सीमा अग्रवाल

"गीत सौंधे जिंदगी के" से


Thursday, 4 September 2025

सद्गुरु ब्रह्म स्वरूप...

सद्गुरु ब्रह्म स्वरूप है, चरनन में सुख वास।
मृण्मय से चिन्मय करे,  अंतस भरे उजास।।

जाना जब गुरुदेव से,  इस जीवन का सार।
बुद्धि को मेरी मिला,    एक नया आकार।।

जीवन में भीतर तलक, छाया था तम घोर।
ज्ञान-कौंध मन पर पड़ी, हुई सुनहरी भोर।।

अंतस के अँधियार हित, गुरु सूरज सम जान।
एक किरण से ज्ञान की,    हरे तमस-अज्ञान।।

जर्जर जीवन-नाव से, गुरु ही करता पार।
बीच भँवर नैया फँसे, बनता गुरु पतवार।।

सिर पर धारे शिष्य जो, गुरु चरणों की धूल।
उसको पथ के शूल भी, लगते कोमल फूल।।

गुरु का श्रद्धा भाव से, करती वंदन नित्य।
चमके गुर्वाशीष से,    भीतर  ज्ञानादित्य।।

बड़भागी हैं वे मनुज,  सतगुरु जिनके पास।
ज्ञान-मिहिर मन-नभ उगे, मुख पर दिपे उजास।।

© सीमा अग्रवाल
"किंजल्किनी" से