Thursday 4 January 2024

राम-जोत घर-घर जले...



नया वर्ष नव हर्ष है,      छाया नव उल्लास।
राम-जोत घर-घर जले, रचे सुघड़ अनुप्रास।।

राम-नाम मुक्ता चुगो,  राम-राम  की टेर।
मनके प्रभु के नाम के, हरते मन के फेर।।

नमामि राम की नगरी, नमामि राम की महिमा।
नमामि राम का गौरव, नमामि राम की गरिमा।

राम नहीं हैं मात्र कल्पना, जग के पालनहारे हैं।
कितने दुष्ट दनुज जगती के, पल भर में संहारे है।
रिश्तों में आदर्श शिरोमणि, पुरुषों में सर्वोत्तम हैं।
मर्यादा के रखवाले प्रभु, भव के तारन हारे हैं।

भावमगन जन अवध पुरी के, राजकुँवर घर आएँगे।
सागर सुख के लहराएँगे,  घट रीते भर जाएँगे।
गूँज रही धुन राम-नाम की, राम-नाम की जोत जली,
राम-नाम की नौका में सब, भव-सागर तर जाएँगे।

खुशी में झूमते पुर-जन, ठुमकते-नाचते पुर-जन।
कथाएँ जो सुनीं प्रभु की, मगन मन बाँचते पुर-जन।
लला अब जल्द घर आएँ, विगत सुख लौट फिर आएँ,
निकट है आगमन बेला, निहारें रास्ते पुर-जन।

रामलला के विग्रह की जब, भव में प्राण प्रतिष्ठा होगी।
राम-नाम अधरों पर होगा, राम-नाम में निष्ठा होगी।
लूट मचेगी राम-नाम की, राम-नाम की ईप्सा होगी।
राजा राम बनें अग-जग के, सबके मन यह लिप्सा होगी।

© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
फोटो गूगल से साभार

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर ।वाह्ह वाह्ह !जय श्री राम ।

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  2. सादर हार्दिक आभार । जय श्री राम

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