Thursday 28 July 2016

साथ तुम्हारा गर किस्मत से पाती---

साथ तुम्हारा गर किस्मत से पाती
फूली ना समाती, कितना इतराती !

गुमां होता मुझे भी भाग्य पे अपने
झूमती, गाती, मदमाती, इठलाती !

भर आँखों में मादक सपन सुहाने
राह में तुम्हारी पलकें मैं बिछाती !

जो जो तुम कहते वही मैं बनाती
चाव से फिर सब तुम्हें खिलाती !

तृषित थकित तन-मन पे तुम्हारे
बदली बन- बन बरस मैं जाती !

जो बाँहों में अपनी मुझे तुम लेते
सच लाज से दोहरी मैं हो जाती !

मिल जातीं जब जब नजरें तुमसे
शरमा के तुमसे लिपट मैं जाती !

जो अधरों पे मेरे अधर तुम रखते
विचुम्बित कंपित सिहर मैं जाती !

तुम संग सोती, तुम संग जगती
ढल कर तुममें तुम सी हो जाती !

तुम मेघ रूप बन छाते मुझ पर
बदली सी उमड़ बरस मैं जाती !

मिल दो तन एक जान हम होते
तुम मुझमय मैं तुममय हो जाती !

कोई पृथक् ना होती पहचान मेरी
बस नाम से तुम्हारे मैं जानी जाती !

रूठ जाते गर तुम तो तुम्हें मनाती
कभी मानिनी सी नखरे दिखाती !

छवि पान कर मैं कभी ना अघाती
तुम कान्हा तो मैं मीरा बन जाती !

रचते गीत एक दूजे पर हम दोनों
तुम सुर देते और मैं गुनगुनाती !

तुम अनुभूति मैं, अभिव्यक्ति तुम्हारी
तुम अजस्र प्रवाह मैं छंदोमय हो जाती !

बस कर 'सीमा' यूं ख्वाब ना देख
किस्मत ना सदा यूं साथ निभाती !

- सीमा

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