Monday 25 July 2016

थका-थका सा चाँद ----

थका- थका सा चाँद एक दिन
कितने सागर लाँघ के एक दिन
कितने पर्वत फाँद के एक दिन
आ पहुँचा मेरे द्वार पे एक दिन

टुकुर- टुकुर वो झाँक रहा था
मन में जैसे कुछ आँक रहा था
कितना मधुर बोल था धीमा
रही ना मेरे अचरज की सीमा

भुला ना पाऊंगी वो पल छिन
आया घर मेरे चाँद जिस दिन

उफ कैसा मनोहर उसका रूप
आ रही थी छनकर मीठी धूप
दौड़ी मैं लपक कर उसकी ओर
लाज ने खींच ली मन की डोर

झूम उठी मैं खुशी से उस दिन
जी भर के देखा चाँद उस दिन

निकट उसे जब अपने पाया
प्यार छलक आँखों में आया
मैं उचकी कुछ उसे झुकाया 
फिर वो मुझमें आन समाया

रही ना बाकी प्यास उस दिन
घुली चाँदनी मन में उस दिन

प्यार से उसको अंक लगाया
लोरी गा गाकर उसे सुलाया
उसे सुलाए आँचल में अपने
देखती रही मैं अनगिन सपने

कुछ ना छुपाया मैंने उस दिन
कह दी मन की बात उस दिन

जल्दी ही तन्द्रा टूट गयी मेरी
किस्मत जाग के सो गयी मेरी
जाना जब ये ख्बाव था मेरा
घिर आया आँखों तले अंधेरा

पर ख्बाव ये पूरा होगा एक दिन
आएगा सचमुच चाँद एक दिन

- सीमा

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