Thursday, 21 April 2016

बस तुममें तुमको देखा है---

चाँद नहीं सूरज भी नहीं
बस तुममें तुमको देखा है !
सबसे अलग सबसे जुदा
बस हमने तुमको देखा है !

छल नहीं, कोई छद्म नहीं
अहं नहीं, कोई दंभ नहीं
स्नेहिल नजरों से मंद-मंद
मुस्कुराते तुमको देखा है !

धवल चंद्र सम रूप तुम्हारा
वृत्त ज्यों निर्मल जल की धारा
स्त्रवनों में मधुरिम बतियों का
रस ढुलकाते तुमको देखा है !

यूँ तो दूर बहुत तुम पास नही
मिलने की भी कोई आस नहीं
आँखें मूंद पर जब भी देखा
अपने दिल में तुमको देखा है !

लुकते, छिपते, ओझल होते
कभी शांत कभी चंचल होते
इंदु सम अपने मन-मानस में
अठखेली करते तुमको देखा है !

बहुमुखी प्रतिभा को धारे
अद्भुत मौलिक सृजन सहारे
कन- कन में इस जगती के
सुधा छलकाते तुमको देखा है !

- सीमा

Wednesday, 20 April 2016

आई हूँ जग से ठोकर खाकर

आई हूँ जग से ठोकर खाकर
हर भौतिक सुख वहीं गंवाकर
अब कोई उजली राह दिखाकर
हे प्रभु मेरे ! मुझ पर कृपा कर

मन भटका संसार- सुखों में
झुलस गया अंगार- दुखों में
हाथ न कुछ भी मेरे आया
पल भर में सब हुआ पराया

माँगू खाली हाथ फैला कर
हे प्रभु मेरे ! मुझ पर कृपा कर

आखिर कब तक धरूं मैं धीर
अब तो हर लो मन की पीर
बहुत अंधेरा है इस जग में
पग- पग ठोकर खाऊं मग में

आशा की एक किरण दिखाकर
हे प्रभु मेरे ! मुझ पर कृपा कर !

तुझसे छिपा है क्या गम मेरा
हुआ ना कबसे मन में सवेरा
तमस का गहन वितान तना है
मन व्याकुल व्यथित उन्मना है

तपते मन की तृषा बुझाकर
हे प्रभु मेरे ! मुझपर कृपा कर

प्रीत की यहाँ पर जीत नहीं
कोई भी तो सच्चा मीत नहीं
रिश्तों में अब वह ताव नहीं
वह आदर,मान औ आब नहीं

मुझे सखा सम तू अपनाकर
हे प्रभु मेरे ! मुझपर कृपाकर

आतुर मम मन तव दर्शन को
छवि पर तेरी पुष्प वर्षण को
मैं तनहा नही, तू साथ है मेरे
सदा तेरा सिर पर हाथ है मेरे

दुनिया को तू ये सत्य बताकर
हे प्रभु मेरे ! मुझ पर कृपा कर

फँसी है कबसे मझधार में नैया
कैसे हो पार नहीं कोई खिवैया
बस दूर से अपना हाथ हिला दे
महामिलन की कोई राह सुझा दे

शरण में अपनी मुझे बुलाकर
हे प्रभु मेरे ! मुझ पर कृपाकर

सारी सारी रात जगें मेरी अँखियाँ
बस तेरी ही राह तकें मेरी अँखियाँ
किससे गम कह, करूं मन हलका
रहीं ना अब वो पहले सी सखियाँ

अब सदा को गहरी नींद सुलाकर
हे प्रभु वर मेरे ! मुझ पर कृपाकर

~~~ सीमा ~~~

Thursday, 14 April 2016

हे प्रभु मेरे ! मुझ पर कृपा कर

आई हूँ जग से ठोकर खाकर
हर भौतिक सुख वहीं गंवाकर
अब कोई उजली राह दिखाकर
हे प्रभु मेरे ! मुझ पर कृपा कर

मन भटका संसार- सुखों में
झुलस गया अंगार- दुखों में
हाथ न कुछ भी मेरे आया
पल भर में सब हुआ पराया

माँगू खाली हाथ फैला कर
हे प्रभु मेरे ! मुझ पर कृपा कर

आखिर कब तक धरूं मैं धीर
अब तो हर लो मन की पीर
बहुत अंधेरा है इस जग में
पग- पग ठोकर खाऊं मग में

आशा की एक किरण दिखाकर
हे प्रभु मेरे ! मुझ पर कृपा कर !

~ सीमा

Wednesday, 13 April 2016

ए मेरी जिंदगी

ए मेरी जिंदगी
क्यों इतनी उलझी
पेचीदी पहेली सी है तू
जितनी करूँ कोशिश
सुलझाने की तुझे
उतने ही उलझते जाते छोर तेरे
ललक जगाती जीने की
खुशियाँ दिखा दूर से
मन भरमाती
फिर आहिस्ता- आहिस्ता
सुख- चैन ही छीन लेती सारा
इस हाल में
एक तेरा विश्वास लिए

मन में अटूट प्यास लिए
कोई जीए तो जीए कैसे
अब तू ही बता जरा
बेरहमी तो थी तेरी
पर ये किस्मत थी मेरी
कि मुझे बदौलत तेरी
बेरुखी का आज खिताब मिला
फिर भी तू चिपकी है
मुझसे जिंद सी
क्यों इस तरह बेवजह
बस इतना
दे तू मुझे बता
होगा मुझ पर एहसान तेरा
ए मेरी जिंदगी !

~सीमा

Saturday, 9 April 2016

भरी महफिल से मैं उठ चली

भरी महफिल से मैं उठ चली !
मेरी उपस्थिति सबको खली !

खिलने को थी बेताब मगर
मुरझ गई मेरे दिल की कली !

बदली सी मैं घिर-घिर आई
झर-झर बरसी औ मिट चली !

पूछे कोई नाम पता गर मेरा
कह देना थी पगली मनचली !

सवेरा न कोई नसीब में मेरे
जीवन की मेरे साँझ ढली !

- सीमा

Friday, 8 April 2016

मन प्यासा

मन प्यासा
तन लातूर हुआ
स्नेह- जल
कोसों दूर हुआ !

आस रही ना
कोई मन में
हर सपना
चकनाचूर हुआ !

मिलता कैसे
उससे ज्यादा
किस्मत को जितना
मंजूर हुआ !

हर ख्वाब
रिसता आँखों से
कैसा बदरंग
औ बेनूर हुआ !

रहम न आया
जरा भी मुझ पर
क्यों नसीबा
इतना क्रूर हुआ !

मस्त हैं सब
अपने- अपने में
कैसा जग का
दस्तूर हुआ !

अपने सुख में
भूला पर को
क्यों कोई इतना
मगरूर हुआ !

~ सीमा