देखो उस पार क्षितिज के,
दिखता जो अंतिम छोर है !
वहाँ से हाथ हिला कर कोई,
मुझे बुलाता अपनी ओर है !
खिंचती जाती मैं पास उसके
बँधी उस संग नेह की डोर है !
याद जब-जब आती उसकी
भीग जाती नयन की कोर है !
निशां न वहाँ गम के तम का
खिली रहती उजली भोर है !
जाना चाहूँ दौड़ पास उसके
न जानूं, जाना किस ओर है !
-सीमा
No comments:
Post a Comment