मेरी गली वो आए , इक 
झलक दिखा कर चले गए
खुशी का एक झोंका मानो , 
मेरे गम ने देखा है ! 
प्यार की पेंग बढ़ा रहे थे,
छूने गगन को जा रहे थे
एक झटका लगा तो सच
धरती का सामने अपने देखा है !
ख्वाबों की दुनिया रास न आई
सच पर अपनी नजर टिकाई 
पंख झुलसते अरमानों के, 
सपनों को सिसकते देखा है !
मेरी चाहत की तुम हो सीमा
तुम्हारे सिवा कोई चाह नहीं 
सुन ये मन ही मन इठलाते 
खुद को भी हमने देखा है !
मुकर गये वो वादे से अपने 
शायद मजबूरी थी उनकी
यूँ तो चुपके चुपके अश्क बहाते
उनको हमने देखा है ! 
बहुत पुकारा उस निर्दयी को
वहाँ से कोई सदा न आई 
मोम इन आँखों से हमने 
पत्थर होते देखा है ! 
अब भी वो आते जाते हैं
दिल की गली से होकर 
पर राह गुजरते अजनबी सा
अब उनको हमने देखा है ! 
-सीमा अग्रवाल
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