Tuesday 23 December 2014

अपना बचपन माँ का आँचल

जीवन की धुंधली छाया में,
छल-छद्म की बिखरी माया में,
गम के पसरते साए में और
सुख की सिमटी-सी काया में,
           मैं ढूँढ रही, हो पगली दीवानी
          अपना बचपन, माँ का आँचल !

जग के निष्ठुर उपहासों में,
सुख की बंजर-सी आसों में,
जीवन-मरण का खेल खेलती
चलती थमती-सी साँसों में,
          मैं ढूँढ रही, हो पगली दीवानी
          अपना बचपन, माँ का आँचल !

दिल के मरते जज्बातों में,
बिन मौसम की बरसातों में,
पग पग झोली में आ गिरती
गम की अनगिन सौगातों में,
          मैं ढूँढ रही, हो पगली दीवानी
          अपना बचपन, माँ का आँचल !

अपने प्रिय उस शान्त गाँव में,
बूढ़े पीपल की शीत छाँव में,
आ लौट चलें अब ए दिल, वहीं
क्यूँ उलझें इन मुश्किल दाँव में,
          मिलेगा वहीं जाकर अब मुझको
          अपना बचपन, माँ का आँचल !

-डाॅ0 सीमा अग्रवाल
  मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

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