गुरु जम्भेश्वर राज्य विश्वविद्यालय, मुरादाबाद के लिए रचित कुलगीत...
सर्वधर्म समभाव समन्वित, सुगठित सहज सुकाय।
सुर साहित्य संगीत संस्कृति, समरसता समवाय।
महाग्रंथ में इस मंडल के, जुड़ा नया अध्याय।
विश्वविद्यालय गुरु जम्भेश्वर, नवयुग का पर्याय।
उर्वर धरा है ज्ञान की ये, गढ़े सुघड़ व्यक्तित्व।
उखाड़ न पाएँ आँधियाँ भी, सुदृढ़ तने अस्तित्व।
अड़ें शक्तियाँ अगर विरोधी, करे उन्हें निरुपाय।
विश्वविद्यालय गुरु जम्भेश्वर, नवयुग का पर्याय।
शुद्ध चेतना जाम्भोजी की, पराशक्ति का धाम।
बसा राम गंगा के तट पर, पीतल नगरी नाम।
बैर-द्वेष से परे जहाँ सब, देते नित निज दाय।
विश्वविद्यालय गुरु जम्भेश्वर, नवयुग का पर्याय।
प्रगति-पंथ पर बढ़े चलें हम , लिए अडिग विश्वास।
आए मंजिल पास हमारे, चूमे भाल सहास।
दीप ज्ञान का जले चतुर्दिक, हर ले कलुष -कषाय।
विश्वविद्यालय गुरु जम्भेश्वर, नवयुग का पर्याय।
मिटें वृत्तियाँ सकल तामसी, आए स्वर्णिम भोर।
वेद-ऋचाएँ मुखरित दिशि-दिशि, गुंजित हों सब छोर।
सद् विचार हों नवाचार हों, सुखकर शुभ अभिप्राय।
विश्वविद्यालय गुरु जम्भेश्वर, नवयुग का पर्याय।
© प्रो. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
१५ जनवरी, 2025