Friday, 20 June 2025

योग दिवस...

आज सभी संकल्प लें, रोज करेंगे योग।
चित्तवृत्तियाँ शुद्ध रख,    दूर करेंगे रोग।।

स्वस्थ निरोगी  तन रहे,   योग  बने  आधार।
व्याधि न कोई छू सके, सुखमय  हो  संसार।।

वशीकृत चित्तवृत्तियाँ,     बनतीं साधन योग।
नियमन यदि इनका करें, तन-मन रहें निरोग।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Tuesday, 17 June 2025

तुम अनूठी सी छटा हो...

सौम्यता शालीनता की,
तुम अनोखी सी छटा हो।
जो निखर उठती बरस कर,
वो घिरी घन की घटा हो।

मुख कमल उत्फुल्ल हर पल,
गम-शिकन दिखती नहीं है।
ये सुघड़ता ये निपुणता,
हर कहीं मिलती नहीं है।
गूढ़ अतिशय पावनी ज्यों,
शंभु की जलमय जटा हो।

घुप तमस में चाँदनी सी।
बादलों में दामिनी सी।
शांति का आभास देती,
रात तुम वो कासनी सी।
केश काले लग रहे ज्यों,
घिर रही काली घटा हो।

© सीमा

Monday, 16 June 2025

हरहराता मन नदी सा...

हरहराता मन नदी सा,
गम हिमालय से अटल हैं।
पर लगे हैं चाहतों के,
तक रहीं नभ का पटल हैं।

© सीमा अग्रवाल

Wednesday, 11 June 2025

ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा...

भभका सूरज जेठ में,   उगले रहरह आग।
वट-पूनम की चाँदनी, छिटक रही अनुराग।।

दिवस भभकते आग से,   झुलसे भू की देह।
मधुर-मधुर मृदु चाँदनी, ज्यों शीतल अवलेह।।

जन्म कबीरा- वेद का, सरयू का प्राकट्य।
अद्भुत पूनम जेठ की, अद्भुत ये वैशिष्ट्य।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
फोटो गूगल से साभार

Thursday, 5 June 2025

आज दिवस पर्यावरण...

वृक्षों की सेवा करो, मिलता पुन्य महान।
पालो पोसो जतन से, समझ इन्हें संतान।।

पीकर कार्बन का जहर, देते अमृत दान।
तरुवर जीवन के लिए, कुदरत का वरदान।।

अवशोषित कार्बन करें, घातक जहर समान।
प्राणवायु देकर हमें, देते जीवन दान।।

वृक्ष हमारे देवता, वृक्ष हमारे मित्र।
दान करें निस्वार्थ ये, रखते भाव पवित्र।।

वृक्ष हमारे देव हैं,           वृक्ष हमारे इष्ट।
शीत-घाम-तम झेलकर, देते हमें अभीष्ट।।

वृक्षों का रोपण करें, रहे धरा संपन्न।
हरियाली चहुँ ओर हो, बहुविध उपजे अन्न।।

रेत-रेत सब खेत हों, पृथ्वी बने मसान।
रोको कोई वृक्ष का,  अंधाधुंध कटान।।

प्रकृति माँ सी पूज्य है, रक्खो सदा सहेज।
हरी-भरी हँसती रहे,   खुशियों से लबरेज।।

पाला पोसा नर तुझे,    दिया सुलभ आहार।
अपने पालक वृक्ष पर, क्यों तू करे  प्रहार।।

वृक्षों पर सुन मनुज यदि, चलीं आरियाँ और।
धरती पर इक दिन तुझे, नही मिलेगा ठौर।।

छाया दी जिस वृक्ष ने, पोसा देकर अन्न।
आज उसी को काटता, मानव बड़ा कृतघ्न।।

जंगल-जंगल कट रहे, सूख रहे जल स्रोत।
लिप्सा बढ़ती जा रही, घटती जीवनजोत।।

शुद्ध रहे पर्यावरण, शुद्ध रहें जल - वायु।
काया शुद्ध निरोग हो, घटे न यूँ ही आयु।।

आज दिवस पर्यावरण, काम करें सब नेक।
आस-पास अपने सभी,    रोपें पौधा एक।।

मिले फसल मनभावनी,        बिरबे ऐसे रोप।
फल आशा-अनुरूप हो, झलके आनन ओप।।

वृक्षों का रोपण करो,  दो पोषण भरपूर।
आएगी वरना प्रलय, दिवस नहीं वह दूर।।

आओ हम सब आज से, खाएँ ये सौगंध।
जीवन भर निभाएंगे , प्रकृति-पुत्र संबंध।।

© सीमा अग्रवाल
दोहा संग्रह "किंजल्किनी" से

फोटो गूगल से साभार