"समर्थ" की शान में एक असमर्थ प्राय प्राणी के हृदयोद्गार...😅
इतना चिट्ठा क्यों भला, माँग रही सरकार।
देते-देते थक चुके, बार-बार क्यों वार ?।।
भेजी फिर से ये बला, क्या अब इसका अर्थ ?
दिन जाने के आ रहे, कहती- बनो समर्थ।।
साध सकें ये पोर्टल, इतने कहाँ समर्थ ?
इसको भरने में हुए, साबित हम असमर्थ।।
नौका अपनी डूबती, फँसी बीच मझधार।
कौन मिले इस हाल में, खड़ा लिए पतवार।।
रोज नयी इक जंग है, रोज नया संग्राम।
नयी-नयी टैक्नीक हैं, नये-नये हैं काम।।
*©* सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
फोटो गूगल से साभार
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