Saturday, 31 May 2025

रहिए सदा सतर्क...

बात-बात पर हेकड़ी, बात-बात पर रार।
ऐसे जुल्मी जीव से,       पाएँ कैसे पार।।

बातें सज्जन सी करें, रक्खें मन में चोर।
ओछे-ओछे कर्म कर, होते हर्ष विभोर।।

अहित चाहना और का, उल्टी माला फेर।
कुत्सित ऐसी भावना,   पल में होती ढेर।।

नफरतजीवी जीव से, रहिए सदा सतर्क।
मीठा-मीठा बोलकर,   कर दे बेड़ा गर्क।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ. प्र. )

प्रातः स्मरणीय पुण्य श्लोका माँ अहिल्याबाई होल्कर के त्रिशताब्दी जन्म दिवस पर उन्हें शत-शत नमन 🙏🙏



जामखेड़ महाराष्ट्र में,     चौंडी नामक गाँव।
घर भर का साया बनी, वट पीपल की छाँव।

साधारण सा गाँव था, साधारण परिवार।
चरवाहे का काम था, जीवन का आधार।।

नाम पिता का मानको,   मात सुशीला नार।
हर मानक पर थीं खरी, शक्ति शील भंडार।।

बाबा सा की लाडली, आई की अनुहार।
छोटे-छोटे स्वप्न थे,     छोटा सा संसार।।

मुखड़ा उजला गोल ज्यों, चंदा की तस्वीर।
मन निर्मल पावन महा,      जैसे गंगा नीर।।

शिव की थीं आराधिका, भक्ति भाव अनन्य।
परहित में नित रत रहीं,    रहते ज्यों पर्जन्य।।

मन था निर्मल आइना,    नयना स्वप्न हजार।
सत्य गुणों की खान थीं, छुआ न लेश विकार।।

बाहर से चट्टान सम,  अंतस अतिशय पीर।
नयन-नीर की ले मसि, रच डाली तकदीर।।

कूट-कूट कर गुण भरे, करुणा-ममता-त्याग।
वृत्त रहा निर्मल सदा,      लगा न कोई दाग।।

दुश्मन की हर योजना, करतीं पल में भंग।
दूरदर्शिता आपकी,       देख सभी थे दंग।।

राज्य-प्रजा के हित सदा, रहती थीं बेचैन।
तनिक न अपना ध्यान था, पल भर मिला न चैन।।

पग-पग मिलीं चुनौतियाँ, आए कठिन प्रसंग।
खरी कसौटी पर रहीं,         साधे रक्खे अंग।।

अद्भुत उनके कार्य थे, अद्भुत उनका न्याय।
उनके साहस-त्याग का,   कोई नहीं पर्याय।।

ज्यों-ज्यों तम को चीरतीं, घिरता फिर अँधियार।
सूर्य-किरण बन कौंधती,    कर्मों की चमकार।।

कड़ी परीक्षा की घड़ी,  लुटता जीवन-कोष।
किस्मत को ललकारतीं,  भर आँखों में रोष।।

एक-एक कर खो दिए, प्राण-पियारे तीन।
रानी होकर भी रहीं,    सदा अभागी दीन।।

कितने अपने चल बसे,शिव शंकर के धाम।
अंतस में पीड़ा लिए,      करतीं सारे काम।।

जन-जन की माता बनीं, संततिहित में लीन।
मातोश्री बन आज भी, उर-आसन आसीन।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Tuesday, 13 May 2025

इतने कहाँ समर्थ...


"समर्थ" की शान में एक असमर्थ प्राय प्राणी के हृदयोद्गार...😅

इतना चिट्ठा क्यों भला, माँग रही सरकार।
देते-देते थक चुके,     बार-बार क्यों वार ?।।

भेजी फिर से ये बला, क्या अब इसका अर्थ ?
दिन जाने के आ रहे,    कहती- बनो समर्थ।।

साध सकें ये पोर्टल,    इतने कहाँ समर्थ ?
इसको भरने में हुए, साबित हम असमर्थ।।

नौका अपनी डूबती, फँसी बीच मझधार।
कौन मिले इस हाल में, खड़ा लिए पतवार।।

रोज नयी इक जंग है, रोज नया संग्राम।
नयी-नयी टैक्नीक हैं, नये-नये हैं काम।।

*©* सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

फोटो गूगल से साभार

Sunday, 11 May 2025

एक दोहा...

बड़े-बड़े प्रबुद्ध यहाँ,   देखे आत्म विमुग्ध।
सार न जाने ज्ञान का, कहते खुद को बुद्ध।।

© सीमा अग्रवाल

मुरादाबाद

Thursday, 8 May 2025

कुछ दोहे...

कुछ दोहे...

तुलना मेरी आपकी, कैसे हो प्रभु मान्य ?
आप महकता खेत हैं, मैं अदना सा धान्य।।१।।

करो समर्पण राम सा,  सीता सा संघर्ष।
जो तुम चाहो देखना, प्रेम - नेम उत्कर्ष।।२।।

चढ़ा आवरण झूठ का, दिखते हैं झक्कास।
कहने भर के ठाठ बस, भीतर से खल्लास।।३।।

एक किनारे से बँधी, नाव न करती पार।
चलना ही जीवन समझ, चलकर उतरे पार।।४।।

तट से जो नौका बँधी, गाँठ बाँधती छार।
अकर्मण्यता जीव की, केवल भू पर भार।।५।।

नींद न आती रात भर, मन में उठें फितूर।
ख्याली घोड़े  दौड़ते, सरपट कितनी दूर।।६।।

भेजा मेला देखने,     देखा- हुए निहाल।
पलट बुलाएँ तात जब, जाएंगे तत्काल।।७।।

अजब यहाँ माहौल है, अजब यहाँ के खेल।
ऐसे जग के साथ प्रभु,     मिले न मेरा मेल।।८।।

माँ मेरी मुझसे कहे, लगा न जग से नेह।
चंद दिनों रहकर यहाँ, जाना अपने गेह।।९।।

बस्ती में डाका पड़ा, घर-घर में अति शोर।
निर्धन चिन्ता क्या करे, क्या ले लेगा चोर ?।।१०।।

दौलत बढ़ती देखकर, बढ़ जाता मन-कूप।
अंत न होता चाह का, आती धर  नव रूप।।११।।

© ® डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. ) 
साझा संग्रह "कल्पलता" से