Sunday, 31 December 2023

आगाज नए साल का....

आने वाले साल से,  कहे पुराना साल।
रहे अधूरे काम जो, आकर उन्हें सँभाल।।

आने वाले साल से,    कहे पुराना साल।
तेरा भी इक साल में, होगा मुझसा हाल।।

तू उगता सूरज हुआ,  तुझको मिलें सलाम।
अस्तांचल की ओर मैं, मुझ पर लगा विराम।।

जश्न मने नववर्ष का, नये सजें सब साज।
नयी-नयी हों चाहतें,  नया-नया आगाज।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
सर्वाधिकार सुरक्षित

Wednesday, 13 December 2023

अब न तुमसे बात होगी...

अब न तुमसे बात होगी...

अब न तुमसे बात होगी।
गमज़दा  हर रात होगी।
अब न  होंगे  चाँद- तारे,
ना  रुपहली  रात होगी।

कुछ  पलों की  जिंदगानी,
कुछ  पलों   में  ढेर  होगी।
दो घड़ी  भी 'गर मिले तो,
दो घड़ी  क्या  बात  होगी ?

चाँद भी रूठा हुआ सा,
चाँदनी भी सुस्त सी है।
कुलबुलाते से सितारे,
क्या हसीं अब रात होगी ?

अब अकेले इन दिनों का,
गम सहारा है हमारा।
रात साए में अमा के,
बात किसको ज्ञात होगी ?

बुझ रही है दीप की लौ,
टूटती सी श्वास भी अब।
ख्वाब में ही आ मिलो तो,
साथ ये सौगात होगी।

कीं कभी जो बात तुमसे,
आ रहीं सब याद हमको।
आज  नयनों  से  हमारे,
आखिरी  बरसात  होगी।

अब न तुमसे बात होगी
अब न तुमसे बात होगी....

© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद ( उ.प्र.)

Tuesday, 12 December 2023

रूपमाला / मदन छंद...

रूपमाला/मदन छंद...

विधान – (सम मात्रिक) 24 मात्रा, 14,10 पर यति, आदि और अंत में वाचिक भार 21 गाल l कुल चार चरण , क्रमागत दो-दो चरणों में तुकांत l

ढूँढते हैं प्राण पागल,   धूप में भी छाँव।
चाँदनी नीचे बिछी पर, जल रहे हैं पाँव।
शांत नीरव रात में भी, मचा मन में शोर।
चाँद गुपचुप नैन खोले, देखता इस ओर।

दे रहे जो दासता को,       बेबसी का नाम।
कर रहे वे साथ अपने, खुदकुशी का काम।
मन उड़े स्वच्छंद नभ में, ले हवा में साँस।
दो पलों की जिंदगानी, उस पर ये उसाँस।

फूस की है नींव जिस पर, मोम की दीवार।
आँसुओं के साथ अरमां, कर रहे चीत्कार।
और क्या-क्या देखना है, हे जगत-कर्तार ?
देख कितना दर्द मन को,   दे रहा संसार।

रूपमाला या मदन सा,  खुशनुमा आगाज।
चाँद सा मुखड़ा दमकता, चाँदनी का ताज।
शुभ सधे श्रंगार सोलह,   सोहते सुर साज।
हसरत भरा नभ भी जमीं, तक रहा है आज।

© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
सर्वाधिकार सुरक्षित

Sunday, 10 December 2023

पद्मावती छंद- विधान एवं उदाहरण...

पद्मावती छंद...
विधान...
पद्मावती छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जिसमें क्रमशः 10, 8, 14 मात्रा पर यति  अनिवार्य है।
प्रथम दो अंतर्यतियों में समतुकांतता आवश्यक है। चार चरणों के इस छंद में दो-दो या चारों चरण समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास अधोवत् है-
द्विकल + अठकल, अठकल, अठकल + चौकल + दीर्घ वर्ण (S)
2 2222, 2222, 2222 22 S = 10+ 8+ 14 = 32 मात्रा।
उदाहरण...👇
★★★★★★★★★★★★★★★★★

मन की सब बातें, रस-बरसातें, रात-दिवस हम करते थे।
सुख-दुख भी आकर, बनते चाकर, कंटक मग  के हरते थे।
तुमसे ये जीवन, जैसे उपवन, हरा-भरा नित रहता था।
पग-पग हरियाली, मने दिवाली, झरना सुख का बहता था।
© सीमा अग्रवाल,
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)
★★★★★★★★★★★★★★★★★

मन सावन सा बन, जग का आँगन, सुखमय रसमय कर दे रे।
पथ बने सुकोमल, खिलें कमल-दल, बेजा तिनके हर ले रे।
बन सरल विमल मन, जैसे दरपन, जग तुझमें खुद को देखे।
आया दुख हरने, भव-सर तरने, रच सत्कर्मों के लेखे।
© सीमा अग्रवाल,
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

★★★★★★★★★★★★★★★★★

जीवन है तीखा, मिर्च सरीखा, स्वाद निराला चख ले रे।
जिनसे मन मिलता, जीवन खिलता, साथ उन्हीं का रख ले रे।
तन-मन कर अर्पण, प्यार समर्पण, सुख मिलता है देने में।
साथी ये सच्चा, दे ना गच्चा, नौका जग की खेने में।
© सीमा अग्रवाल,
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

★★★★★★★★★★★★★★★★★

समझो प्रिय जीवन, निर्मल दरपन, क्या शरमाना बोलो तो।
कहती क्या पायल, क्यों मन घायल, राज कभी कुछ खोलो तो।
पल-पल अति चंचल, भाव सुकोमल, आते-जाते रहते हैं।
यादों के साए, निसिदिन छाए, दिल तड़पाते रहते हैं।
© सीमा अग्रवाल,
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

★★★★★★★★★★★★★★★★★

सावन मनभावन, जग का आँगन, तुम बिन कितना सूखा है।
नद-पोखर-उपवन, गाँव-खेत वन, कण-कण जैसे रूखा है।
घन नभ लहराओ, जल बरसाओ, जग झूमे-नाचे-गाए।
उपजें अन्न-फूल, मिटें मन-शूल, दामन सुख से भर जाए।
© सीमा अग्रवाल,
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

★★★★★★★★★★★★★★★★★

Friday, 8 December 2023

भर-भर रोए नैन...

हंसगति छंद...

भर-भर रोए नैन, चुए परनारे।
नींद बिना बेचैन,  हुए रतनारे।
खोजूँ कहाँ सुकून, कहूँ क्या किससे ?
अपने ही जब बात, करें ना मुझसे।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद 

Sunday, 26 November 2023

आज देव दीपावली....

देता सुर को त्रास था,    करता पाप अनंत।
त्रिपुरारि कहलाए शिव, किया असुर का अंत।।

त्रिपुरासुर का अंत कर, दिया इंद्र को राज।
आज मुदित मन झूमता,  सारा देव समाज।।

पावन गंगा नीर में, कर कातिक स्नान।
देव दिवाली देवता, करें दीप का दान।।

छाई है अद्भुत छटा, दमक रहे सब घाट।
देव दरस की लालसा, जोहें रह-रह बाट।।

पावन काशी धाम में, कर गंगा स्नान।
देव दिवाली देवता,    देते दर्शन दान।।

छिटकी नभ में चाँदनी, कातिक पूनम रात।
काशी के गलियार में, झिलमिल दीपक-पाँत।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
फोटो - गूगल से साभार

Friday, 24 November 2023

सजल- स्वार्थ-लिप्त है दुनिया सारी...

अपनी आस्था   अपने दावे।
अपनी शान  अपने दिखावे।

अपनी ढपली  अपना गाना,
यही सभी के मन को भावे।

खोट नजर आते सब ही में,
अपनी करनी नजर न आवे।

अपनी-अपनी   कहते सारे,
सच्चाई  क्या  कौन  बतावे ?

स्वार्थ-लिप्त है दुनिया सारी,
आग लगी है   कौन बुझावे ?

भरमाएँ सब   इक दूजे को,
राह सही न    कोई सुझावे।

स्वार्थ-मोह में अंधा मानव,
सुख न किसी का उसे सुहावे।

राजनीति में पल-पल हमने,
देखे  कितने  छद्म- छलावे।

चाल अनूठी नियति-नटी की, 
ता- ता- थैया   नाच  नचावे।

आता कभी न चाँद जमीं पर,
पलक-पाँवड़े  व्यर्थ  बिछावे।

सत्य बताकर    कल्पना को,
कौन  हकीकत को झुठलावे।

लेती किस्मत  कठिन परीक्षा,
पग-पग  कंटक  राह बिछावे।

चुग गई  चिड़िया  खेत सारा,
अब  क्या पगले  तू पछतावे।

जाने  भी  दे  सोच न ज्यादा,
काहे  'सीमा'   खून   जलावे।

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© डॉ. सीमा अग्रवाल
    मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Sunday, 12 November 2023

आया कातिक मास...

आया कातिक मास ....

त्योहारों की लिए गठरिया,
आया कातिक मास।
उतर चाँदनी करती भू पर,
परियों जैसा लास।

आज दिवाली का उत्सव है,
चहुँ दिसि है उल्लास।
सजे द्वार-घर-आँगन सबके
अद्भुत अलग उजास।
पकवानों की सोंधी-सोंधी,
आए मधुर सुवास।

माना रात अमा की काली,
विकट घना अँधियार।
उसे बेधने आयी देखो,
जगमग दीप-कतार।
उतरा नभ ले नखत धरा पर,
होता ये आभास।

हल्ले-गुल्ले गली-मुहल्ले,
खुशियों का संचार।
नई-नई आभा में दमकें,
रोशन सब बाजार।
बच्चे छोड़ें आतिशबाजी,
भर मन में उल्लास।

चौदह वर्ष बिताकर वन में,
जीत महासंग्राम।
लौटे आज सिया लखन संग,
अवधपुरी में राम।
पुरवासी फूले न समाए,
दमके मुख पर हास।

आज नखत सब उतरे भू पर,
कर नभ में अँधियार।
प्रभु दरसन की दिल में अपने,
लेकर ललक अपार।
आज अवध में खुशी निराली,
पुलकित हर रनिवास।

साजें दीपावलियाँ घर-घर,
तोरण बंदनवार।
गले मिल सब एक दूजे से,
बाँटे नित उपहार।
रामराज्य आए भारत में,
मिटें सकल संत्रास।

मूल्य वही हों फिर स्थापित,
वरें वही आदर्श।
समरसता हो सार जगत का,
बने वही संदर्श।
दमकें दीप दीप से दीपित,
रचें सुघड़ अनुप्रास।

आया कातिक मास...

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
"मनके मेरे मन के" से

Saturday, 11 November 2023

माटी तेल कपास की...

जलें तेल अरु वर्तिका, दीप बने आधार।
तीनों के गठजोड़ से, अँधियारे की हार।।

माटी तेल कपास की, तिकड़ी बनी मिसाल।
अँधियारे को बेधने,     बुनती जाल कमाल।।

© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी
मुरादाबाद (उ.प्र.)

Friday, 10 November 2023

धनतेरस की शाम...

धनवर्षा से तरबतर, धनतेरस की शाम।
धन्वंतरि की हो कृपा, सब हों पूर्ण सकाम।।

धन-धान्य-आरोग्य मिले, मिले खूब सम्मान।
कृपा करें नित आप पर,  धन्वंतरि भगवान।।

© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

Tuesday, 7 November 2023

भय लगता है ....

हुए अचानक बदलावों से,
भय लगता है।

परंपराएँ युगों-युगों की,
त्याग भला दें कैसे ?
चिकनी नयी सड़क पर बोलो,
दौड़ें  सरपट  कैसे ?
हो जाएँगे चोटिल सचमुच,
फिसले और गिरे तो।
झूठे जग के बहलावों से,
भय लगता है।

बहे नदी -सा छलछल जीवन,
रौ में रहे रवानी।
पसर न जाए तलछट भीतर,
बुढ़ा न सके जवानी।
हलचल भी गर हुई कहीं तो,
गर्दा छितराएँगे।
ठहरे जल के तालाबों से,
भय लगता है।

चूर नशे में बहक रहे सब,
परवाह किसे किसकी ?
दिखे काम बनता जिससे भी,
बस वाह करें उसकी।
झूठ-कपट का डंका बजता,
भाव गिरे हैं सच के।
स्वार्थ-लोभ के फैलावों से,
भय लगता है।

भूल संस्कृति-सभ्यता अपनी,
पर के पीछे डोलें।
अपनी ही भाषा तज बच्चे,
हिंग्लिश-विंग्लिश बोलें।
घूम रहीं घर की बालाएँ,
पहन फटी पतलूनें।
पश्चिम के इन भटकावों से,
भय लगता है।

आज कर रहे वादे कितने,
सिर्फ वोट की खातिर।
निरे मतलबी नेता सारे,
इनसे बड़ा न शातिर।
नाम बिगाड़ें इक दूजे का,
वार करें शब्दों से।
वाणी के इन बहकावों से,
भय लगता है।

गुजरे कल की बात करें क्या,
पग-पग पर थी उलझन।
मंजर था वह बड़ा भयावह,
दोजख जैसा जीवन।
वक्त बचा लाया कर्दम से,
वरना मर ही जाते।
गए समय के दुहरावों से,
भय लगता है।

हुए अचानक बदलावों से,
भय लगता है।

© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

कर्मवीर भारत....



भारत सदा से ही रहा है कर्मवीरों की थली।
दम पे इन्हीं के सभ्यता अनुदिन यहाँ फूली फली।

नित काम में रत हैं मगर फल की न करते कामना।
सौ मुश्किलों सौ अड़चनों का रोज करते सामना।
इनकी लगन को देखकर हों पस्त अरि के
हौसले,
कैसे विधाता वाम हो जब पूत मन की भावना।
शिव नाम मन जपते चलें ले कर्म की गंगाजली।
भारत सदा से ही रहा है कर्मवीरों की थली।

कुछ चुटकियों का खेल है हर काम इनके वास्ते।
धुन में मगन चलते चलें आसान करते रास्ते।
फल कर्म का पहला सदा करके समर्पित ईश को, 
करते विदा सब उलझनें हँसते-हँसाते-नाचते।
कब दुश्मनों की दाल कोई सामने इनके गली।
भारत सदा से ही रहा है,    कर्मवीरों की थली।

उड़ती चिरैया भाँप लें जल-थाह गहरी नाप लें।
अपकर्म या दुष्कर्म का सर पे न अपने पाप लें।
आशीष जन-जन का लिए सर गर्व से ऊँचा किए,
फूलों भरी शुभकर्म की झोली जतन से ढाँप लें।
कलुषित हृदय की भावना कदमों तले घिसटी चली।
भारत सदा से ही रहा है कर्मवीरों की थली।

बैठे भरोसे भाग्य के रहते नहीं हैं ये कभी।
करके दिखाते काम हैं कहते नहीं मुख से कभी।
आए बुरा भी दौर तो छोड़ें न करनी साधना,
फुसलाव में भटकाव में आते नहीं हैं ये कभी।
हर शै जमाने की झुकी, पीछे सदा इनके चली।
भारत सदा से ही रहा, है कर्मवीरों की थली।

© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

घटनी थी जो घट गयी....

अनहोनी होती रहे,       होनी टल-टल जाय।
विधना की मरजी चले, कर लो लाख उपाय।।

घटनी थी जो घट गयी, अब क्या देना तर्क।
बाद हादसे के नहीं,         पहले रहें सतर्क।।

© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
"दोहा संग्रह" से

Monday, 30 October 2023

बात तुम्हारी ही चलती है...

बात तुम्हारी ही चलती है....

पंछी जब कलरव करते हैं।
उपवन-उपवन गुल खिलते हैं।
शीतल मंद हवा चलती है।
बात तुम्हारी ही चलती है।

सूरज हो या चाँद-सितारे।
धुंधलके हों या उजियारे।
उपादान सब ये कुदरत के,
जब जो होते साथ हमारे।
सूने मन बाती जलती है।
बात तुम्हारी ही चलती है।

सुईं घड़ी की चलती प्रतिपल।
नदियाँ बहती जातीं कलकल।
पल रोके से कब रुक पाते,
बढ़ते जाते आगे अविरल।
साँझ सुहानी जब ढलती है।
बात तुम्हारी ही चलती है।

वर्षों बाद तुम्हें जब देखा।
उभर आयी स्मित की रेखा।
अनथक हमने तुम्हें निहारा,
किए रहे पर तुम अनदेखा।
आस-किरन रह-रह छलती है।
बात तुम्हारी ही चलती है।

झेल न पाते जग के पहरे।
तिरें नयन में ख्वाब सुनहरे।
इच्छाओं के पंख रुपहले,
दुबकें जाकर दिल में गहरे।
याद न टाले से टलती है।
बात तुम्हारी ही चलती है।

रस्ता तक-तक नयना हारे।
बहते आँसू ज्यों परनारे।
नहीं लिखा था मिलन भाग्य में,
आते कैसे फिर तुम द्वारे।
हसरत भी आँखें मलती है।
बात तुम्हारी ही चलती है।

यंत्रचलित सा हर दिन बीते।
लौटें लेकर अरमां रीते।
सूर्य जलधि के अंक समाता,
हौले से संझा ढलती है।
बात तुम्हारी ही चलती है।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
"मनके मेरे मन के" से

Saturday, 28 October 2023

आज रात कोजागरी....

पसरी भू पर चाँदनी, आया अमृत काल।
शरदचंद्र का आगमन, ज्योतित नभ का भाल।।

शरद पूर्णिमा पर करें,  कोजागर उपवास।
जाग्रत रहते जन जहाँ, करती लक्ष्मी वास।।

धरती  ने  धारण  किया,  मोहक  हीरक  हार ।
शीतल  नूतन  भाव का,  कन-कन  में  संचार ।।

मन-गगन  में  तुम मेरे,  चमको  बन कर चाँद ।
नयन  निमीलित  मैं करूँ,  देखूँ  गुपचुप चाँद ।।

उलझ-उलझ कर मेघ से, चंदा हुआ उदास।
मेघों रस्ता दो उसे,      रजनी तकती आस।।

आज रात कोजागरी,  बरसे अमृत - धार।
धवल चाँदनी से पटा, देख सकल संसार।।

वर-अभय कर-कमल लिए, विचरें श्री भूलोक।
रात जाग जो व्रत करे,    हर लें उसका शोक।।

चलीं भ्रमण पर लक्ष्मी, धरे अधर पर मौन।
आज रात कोजागरी,     जाग रहा है कौन ?।।


© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
'किंजल्किनी' से

Tuesday, 24 October 2023

ऐसे नहीं मरेगा रावण...

पुतले जितने फूँकोगे उतना अट्टहास करेगा रावण।
                                     ऐसे नहीं मरेगा रावण।
जितने शीश हरोगे उसके  उतने रूप धरेगा रावण।
                                     ऐसे नहीं मरेगा रावण।

जिस रावण को तुम चले मारने वो तो अब है ही नहीं।
जिस त्याग से राम ने मारा  भाव वो तुममें है ही नहीं।

मारना चाहते हो यदि रावण, 
अपने अहम का रावण मारो।
यूँ ही खुद को राम न समझो,
खुद गर्जी का  दानव संहारो।

रहेगा मन विकृत जब तक भीतर वास करेगा रावण।
                                     ऐसे नहीं मरेगा रावण।

मारना चाहते हो गर रावण मन-वाण साधना सीखो।
विषयासक्त निज इंद्रियाँ संयम-डोर से नाथना सीखो।

मर्यादित तुमको होना होगा।
त्याग राम- सा करना होगा।
अपने भीतर का हर विकार,
पहले  तुमको  हरना  होगा।

रोपोगे जो रामत्व मन में खुद ही आन मरेगा रावण।
                                     ऐसे नहीं मरेगा रावण।

पुतले जिसके फूँक रहे तुम वह तो राम का रावण था।
था अति ज्ञानी बलशाली नहीं तुम जैसा साधारण था।

खातिर बहन की सिया हरी।
हाथ न  लगाया  रखी  खरी।
देवानुदानित, वरदानित वह,
नाभि उसकी अमृत से भरी।

हो असाधारण यूँ ही अकारण तुमसे नहीं मरेगा रावण।
पुतले जितने फूँकोगे उतना अट्टहास करेगा रावण।

                                   ऐसे नहीं मरेगा रावण।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
'मृगतृषा' से

Sunday, 15 October 2023

शैलपुत्री मातु प्रथम...

शैलपुत्री मातु प्रथम,   धारे हस्त त्रिशूल।
भक्तन की रक्षा करे, हर ले जग के शूल।।

अर्द्ध चंद्र मस्तक फबे, कर सोहे त्रिशूल।
ताप हरो  माँ शैलजे, हर  लो सारे  शूल।।

© सीमा अग्रवाल

मुरादाबाद ( उ.प्र.)

Friday, 13 October 2023

जीवन क्या है, एक सफर है...

जीवन क्या है....

जीवन क्या हैएक सफर है
आगे क्या हो, किसे खबर है

चलें साथ सब,
हँसते  -  गाते।
बात     बनाते, 
मौज    मनाते।
मस्त मगन मन, लहर-लहर है

कदम-कदम पर,
रचे दरीचे।
गढ़ें न कंटक,
बिछे गलीचे।
कुदरत अपनी, घनी सुघर है

नजर से उसकी,
बचे न कोई।
स्वांग झूठ का,
रचे न कोई।
पल-पल की वह, रखे खबर है

बढ़ चल आगे,
आँखें मीचे।
कोई कितना,
पीछे खींचे।
लक्ष्य अनूठा, कठिन डगर है

गढ़ पथ नूतन,
छोड़ निशानी।
बाद  पीढ़ियाँ,
कहें   कहानी।
काया यश की, अजर-अमर है

कुछ भी कहते,
कहने वाले।
करके रहते,
करने वाले।
करता  काहे,     अगर-मगर है

प्रेम     बाँटता,
बढ़ चल आगे।
जोड़ जगत से,
नेहिल    धागे।
दुआ दवा सी,     करे असर है

तुझसा तू ही,
एक अकेला,
बीच साम्य ही,
करे झमेला।
क्यों ना अपनी, करे फिकर है

ढुलमुल दुनिया,
की क्यों माने।
फितरत उसकी,
कौन न जाने ?
कभी इधर तो, कभी उधर है

योद्धा पथ में
बहुत मिलेंगे।
लक्ष्य-सिद्धि में,
डटे  मिलेंगे।
समझ न इतना,  सुकर समर है

साथ वक्त के,
चले सदा जो।
नब्ज वक्त की,
पकड़ सके जो।
वक्त उसी की,     करे कदर है

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
'मनके मेरे मन के' में प्रकाशित

Thursday, 12 October 2023

तू भी अपनी बोल...

अपने-अपने काम का, पीट रहे सब ढोल।
फर्क न कुछ हम पर पड़े, तू भी अपनी बोल।।

सिर्फ दिखावा-शान में, कहकर झूठी बात।
करते साबित तुम स्वयं, ओछी अपनी जात।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

कतरा-कतरा जिंदगी...

कतरा-कतरा जिंदगी, रिसती आठों याम।                 
सर पर भारी बोझ है, मिले कहाँ आराम।।

खिलने से पहले सदा, मुरझे वदन-सरोज।
सिरहाने रक्खी मिलें,     चिंताएँ हर रोज।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Tuesday, 3 October 2023

हरकत में आयी धरा...

हरकत में आयी धरा, लाजिम उसका क्रोध।
हद से बढ़ते जुल्म जब, कौन न ले प्रतिशोध।।

हुए तब्दील अश्म में, पल में भौतिक भोग।
चित्रलिखित से देखते,  हक्के-बक्के लोग।।

धरती को बंधक बना, साध रहे तुम स्वार्थ।
कंपन उसका क्या कहे, समझो नर गूढ़ार्थ।।

थर्रा उठी बसुंधरा,  डोल उठा स्थैर्य।
जुल्मों को सहता रहे, आखिर कब तक धैर्य ?

धरती को जूती समझ, चलते सरपट चाल।
बिलट गयी जो ये कभी,   कर देगी बेहाल।।

धरती को नित दुह रहे,  होकर हम बेफिक्र।
उस पर होते जुल्म का, करें कभी तो जिक्र।।

जग औचक थर्रा गया, आया जब भूकंप।
अफरातफरी सी मची, मचा खूब हड़कंप।।

-© सीमा अग्रवाल

मुरादाबाद

Friday, 29 September 2023

हंसगति छन्द विधान एवं उदाहरण...

1. यह  20 मात्राओं का चार चरणों वाला सुंदर  मात्रिक छंद है।
2. इसमें 11,9 मात्राओं पर यति होती है।तथा यति से पूर्व विषम चरणों में दोहे के सम चरण की भाँति दीर्घ-लघु वर्ण रखे जाते हैं।
3. दो-दो पंक्तियों में तुकांत सुमेलित किए जाते हैं। चारों पंक्तियों में समतुकांत भी रखे जा सकते हैं।
4. सम चरण में मात्राएँ 3,2,4 या 2,3,4 के क्रम में रखी जाती हैं अंत में 2 गुरु वर्ण अच्छे माने जाते हैं।

उदाहरण...
1- गजानन श्री गणेश...

गजानन श्री गणेश, सदा सुखकारी।
शिव शंकर हैं तात,   उमा महतारी।
प्रथम पूज्य श्रीपाद,  अमंगल हारी।
चरण नवाऊँ माथ,  हरो अघ भारी।

रचनाकार- डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
★★★★★★★★★★★★★★★★★

2- ये हैं गण के ईश...

ये हैं गण के ईश, सुवन शंकर के।
आए   हरने क्लेश, सभी के घर के।
गणपति इनका नाम, सर्व सुख दाता।
पूरण करते काम, दुखों के त्राता।

रचनाकार- डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
★★★★★★★★★★★★★★★★★

3- धेनु  चराएँ  श्याम...

धेनु  चराएँ  श्याम,    बजाएँ  वंशी।
बस गोकुल के ग्राम, हो चंद्र-अंशी।
दें जग  को  संदेश,  करो गौ  सेवा।
सभी  मिटेंगे क्लेश,  मिलेगी  मेवा।

रचनाकार- डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
★★★★★★★★★★★★★★★★★

4- ले झुरमुट की ओट...

ले झुरमुट की ओट, देख लूँ तुमको।
भर नज़रों में रूप,  सेक लूँ मन को।
रहो सदा अब साथ,  जुड़े वो नाता।
बिना तुम्हारे नाथ,  नहीं कुछ भाता।

रचनाकार- डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
★★★★★★★★★★★★★★★★★

5- इतनी मारामार...

इतनी मारामार,    करो मत प्यारे।
देख रहा करतार, डरो कुछ प्यारे।
करे न कोई भेद,   सुने वो सबकी।
त्रास-घुटन या पीर, हरे वो सबकी।

रचनाकार- डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
★★★★★★★★★★★★★★★★★

6- घातक जग के ताप...

घातक जग के ताप, जलें नर-नारी।
कौन रचे ये पाप,    समझना भारी।
अजब जगत बरताव, किसे क्या बोलें।
तोड़ सभी विश्वास, गरल मन घोलें।

रचनाकार- डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
★★★★★★★★★★★★★★★★★

7- उगल रहा रवि आग...

उगल रहा रवि आग, तपन है भारी।
चूल्हे पकता साग,   झुलसती नारी।
क्रुद्ध जेठ का ताप,  सहे दुखियारी।
टपके भर-भर स्वेद,    लपेटे सारी।

रचनाकार- डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
★★★★★★★★★★★★★★★★★

8- कुसुमित जग की डार...

कुसुमित जग की डार, फले अरु फूले।
आशा पंख पसार,        उड़े नभ छू ले।
सुखद सँदेशे रोज,   चले घर आएँ।
बरसें सुख के मेघ, खुशी सब पाएँ।

रचनाकार- डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
★★★★★★★★★★★★★★★★★

9- आया श्रावण मास...

आया श्रावण मास, धरा बलिहारी।
पड़ती शीत फुहार, लगे सुखकारी।
झुलस रहे थे अंग, तपन थी भारी।
कली-कली पर आब, खिली फुलवारी।

रचनाकार- डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
★★★★★★★★★★★★★★★★★

10- आया भादो माह...

आया भादो माह, अहा अति पावन।
झुकि-झुकि बरसें मेघ, सरस मनभावन।
बरस रहे घनश्याम, बिजुरिया चमके।
हो प्रमुदित मन-मोर, नाचता जम के।

रचनाकार- डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
★★★★★★★★★★★★★★★★★

11- तुम्हीं हमारा मान...

तुम्हीं हमारी शान,    मान हो बिटिया।
हम सबका अरमान, जान हो बिटिया।
बिटिया तुम पर नाज,    हमें है भारी।
महक उठी है आज, खिली फुलवारी।

रचनाकार- डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
★★★★★★★★★★★★★★★★★
कॉपीराइट © सीमा अग्रवाल
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धेनु चराएँ श्याम...

हंसगति छंद...
धेनु  चराएँ  श्याम,    बजाएँ  वंशी।
बस गोकुल के ग्राम, हो चंद्र-अंशी।
देते जग - संदेश, करो गौ  सेवा।
सभी मिटेंगे क्लेश, मिलेगी मेवा।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

Tuesday, 26 September 2023

चंद मुक्तक... छंद विधाता

प्रकाशनार्थ
मुक्तक- विधाता छंद

जपूँ नित राम मैं मन में, बसे बस राम हैं मन में। नहीं कुछ कामना मन में, दिखें बस राम कन-कन में।
न कोई आस अब बाकी, न कोई प्यास अब बाकी,
सगे बस राम हैं जग में, रमे बस राम हैं मन में।१।

करूँ मैं क्या प्रभो अर्पण, नहीं कुछ भी यहाँ मेरा।
मिला है जो मुझे जग में, सभी कुछ तो दिया तेरा।
करूँ तेरा तुझे अर्पण, कहाँ इसमें समर्पण है ?
शरण में लो मुझे अपनी, मिटे अज्ञान का घेरा।२।

नसीबों से मिली तुझको, बड़ी दुर्लभ मनुज काया।
लगा सत्कर्म में तन-मन, न पल भी व्यर्थ कर जाया।
सुअवसर है यही पगले, बना ले राम मय जीवन,
गलेगा ग्लानि में तन-मन, गया फिर वक्त कब आया।३।

न हो तुम यूँ दुखी साथी, बुरे दिन बीत जाएँगे।
भरे  गम से  लबालब भी, समंदर  रीत जाएँगे।
रखो बस हौसला मन में, निराशा छोड़कर सारी,                       
मिलेगा न्याय हमको भी, समर हम जीत जाएँगे।४।

नचाती जग इशारे पर, अनूठी नाट्यशाला है।
सिखाती नित सबक सबको, गजब की पाठशाला है।
गलत हरकत किसी की भी, सहन कुदरत न कर पाती।
उछलता जो भरा मद में, निकल जाता दिवाला है।५।

© डॉ0 सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ0प्र0 )

Monday, 25 September 2023

दोहे एकादश...

जन-जन के आदर्श तुम, दशरथ नंदन ज्येष्ठ।
नरता के मानक गढ़े,     नमन तुम्हें नर श्रेष्ठ।।१।।

जीवन के हर क्षेत्र में,  बढ़े निडर अविराम।
ज्ञान-भक्ति अरु कर्ममय, कर्मठ योद्धा राम।।२।।

राम सरिस हो आचरण, राम सरिस हो त्याग।
मिटें तामसी वृत्तियाँ,      जागें जग के भाग।।३।।

मन-कागज जिव्हा-कलम, रचे नव्य आलेख।
राम-राम बस राम का,     बार-बार उल्लेख।।४।।

रिदय कामनागार तो,     कामधेनु हैं आप।
एक छुअन भर आपकी, हर ले हर संताप।।५।।

तोड़ न कोई राम का,   निर्विकल्प हैं राम।
राम सरिस बस राम हैं, और न कोई नाम।।६।।

कण-कण में श्रीराम हैं, रोम-रोम में राम ।
मन-मंदिर  मेरा  बने, उनका पावन धाम ।।७।।

धर्म युद्ध सबसे बड़ा, समर भूमि कुरुक्षेत्र।
गीता का उपदेश सुन, खुलें सभी के नेत्र।।८।।

चिंता करते व्यर्थ तुम,       नश्वर है ये देह।
फल कर्मों का साथ ले, जाना प्रभु के गेह।।९।।

मृत्यु समझते तुम जिसे, नवजीवन - सोपान।
अजर अमर है आत्मा, बात सत्य यह जान।।१०।।

तन ये माटी का बना, माटी में हो अंत।
माटी में मिल जग मिटे, माटी रहे अनंत।।११।।

© डॉ0 सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ0प्र0 )

Monday, 18 September 2023

गणेश चतुर्थी के शुभ पावन अवसर पर सभी को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ…

गणेश चतुर्थी के शुभ पावन अवसर पर सभी को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ…

हरो विनायक विघ्न सब, रख लो मेरी लाज।
स्वार्थ भाव पनपे नहीं, हों परहित में काज।।

मातु शिवा के लाडले, पितु शंकर का मान।
वक्रतुण्ड हे गजबदन, करो जगत-कल्यान।।

तुम्हीं हमारे देवता, तुम्हीं हमारे इष्ट।
मनोकामना पूर्ण कर, देते हमें अभीष्ट।।

विराजें आसन गणपति, रिद्धि-सिद्धि के साथ।
तुष्टि-पुष्टि शुभ-लाभ के, धरे शीश पर हाथ।।

रहें संग शुभ-लाभ के, नित आमोद-प्रमोद।
वंश-वृक्ष फलता रहे, बरसें सुखद पयोद।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
फोटो गूगल से साभार

Wednesday, 6 September 2023

मेटो अष्ट विकार....

अष्टम् तिथि को प्रगटे, अष्टम् हरि अवतार।

अष्टम् तिथि को प्रगटे, अष्टम् हरि अवतार।
सुत अष्टम् देवकी के, मेटो अष्ट विकार।।

© सीमा अग्रवाल

Friday, 1 September 2023

आज के इस हाल के हम ही जिम्मेदार....

आज के इस हाल के हम ही जिम्मेदार…

आज के इस हाल के हम ही जिम्मेदार…

आज जो इस हाल पर हम रो रहे हैं।
बीज घातक भी हमीं तो बो रहे हैं।

कर रहे हैं रात दिन हम पाप कितने।
झेलने हैं कौन जाने ताप कितने।
कौन जो सच की डगर हमको दिखाए,
पल रहे हैं आस्तीं में साँप कितने।
काल घातक बैठ सर मँडरा रहा नित,
चैन की वंशी बजा हम सो रहे हैं।

चल रही हैं रात-दिन दूषित हवाएँ।
आज मन को भा नहीं पातीं फिजाएँ।
कौन जाने कौन सा पल आखिरी हो,
भोगनी होंगी हमें कितनी सजाएँ !
हैं नहीं दो पल सुकूं के पास अपने,
जिंदगी को बोझ सा हम ढो रहे हैं।

जलकणों में धूलिकण नित मिल रहे हैं।
फेंफड़ों में शूल बन जो चुभ रहै हैं।
हो चुकी है आज मैली शुभ्र गंगा,
गंदगी के ढेर हर सूं दिख रहे हैं।
मूँद बैठे आँख ही हा! रोशनी से,
कालिखों से मुँह सना हम धो रहे हैं।

स्वार्थ हद से बढ़ रहे हैं, हैं कहाँ हम ?
साज सारे पास पर, लगते हमें कम।
चाह ये बस हों भरे भंडार अपने,
भूख से बेहाल कोई, क्या हमें गम।
तुल्य पशु के हाय क्यों हम हो रहे हैं ?

प्रेम करुणा भाव से थे नित भरे हम,
विश्व सारा था हमें परिवार जैसा।
हों गुँथे माणिक्य मनके तार में ज्यों,
था हमें जग कीमती उस हार जैसा।
हैं धरोहर जो हमारी संस्कृति के,
मूल्य सारे आज वो हम खो रहे हैं।

आज भाई को न भाता भ्रात अपना।
हो गया सीमित सिकुड़ घरबार अपना।
बँट गए हैं आज तो माता-पिता भी,
बंधुता का भाव है अब मात्र सपना।
गम समाया मोतिया बन जिन नयन में,
बीन छिटके मोतियों को पो रहे हैं।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
साझा संकलन ‘भावों की रश्मियाँ’ में प्रकाशित

Wednesday, 30 August 2023

भ्रातृ चालीसा...


भ्रातृ चालीसा….रक्षा बंधन के पावन पर्व पर

भ्रातृ-चालीसा —

भाई घर की शान है, बहनों का अभिमान।
भाई में बसती सदा, हम बहनों की जान।।

रिश्ता भाई-बहन का, सबसे पावन जान।
इसके जैसा जगत में, मिले नहीं परमान।।

सबसे उजला निर्मल नाता।
भाई-बहन का जग-विख्याता।।१।।

भाँति-भाँति के जन जगती में।
भाँति-भाँति के मन जगती में ।।२।।

नियामकों ने नियम बनाए।
सोच-समझ परिवार बनाए ।।३।।

चुन-चुन गढ़ीं सुदृढ़ इकाई।
मात- पिता, भगिनी औ भाई।।४।।

एक वृंत पर खिले दो फूल।
एक ही मृदा एक ही मूल।।५।।

सबसे प्यारा नाता जग में।
एक खून दौड़े रग-रग में।।६।।

रिश्ता है ये सबसे पावन।
जैसे सब मासों में सावन।।७।।

एक मातु के हम-तुम जाये।
अपने साथ मुझे तुम लाये।।८।।

लिखे- पढ़े- खेले संग – संग।
देखे जीवन के रंग – ढंग।।९।।

तुम बचपन के साथी मेरे।
रहे नित्य ही बनकर प्रेरे।।१०।।

आँख खुली तो देखा तुमको।
आँख मुँदे तक देखूँ तुमको।।११।।

भाई तुम रक्षक बहनों के।
तारे हो उनके नयनों के।।१२।।

तुम्ही बहन के पहले हीरो।
तुम बिन दुनिया लगती जीरो।।१३।।

बुरी नजर से देखा जिसने।
सबक सिखाया उसको तुमने।।१४।।

तुम पर कोई आँच न आए।
हर मुश्किल से प्रभु बचाए।।१५।।

साथ तुम्हारा नित बना रहे।
ये माथ युगों तक तना रहे।।१६।।

राखी सदा कलाई सोहे।
बहना हर पल रस्ता जोहे।।१७।।

जब-जब मुझपे विपदा आई।
आये दौड़ न देर लगाई।।१८।।

जब-जब गिरा मनोबल मेरा।
पाया तब – तब संबल तेरा।।१९।।

पति, संतान, पिता या माता।
कोई न इतना साथ निभाता।।२०।।

अश्रु बहन के देख न पाते।
सम्मुख विधि के अड़ तुम जाते।।२१।।

बिना स्वार्थ दौड़े तुम आते।
पिता तुल्य सब फर्ज निभाते।।२२।।

तुमसे रिश्ते-नाते औ रस।
तुम बिन दुनिया होती नीरस।।२३।।

भाई -दूज पर्व अति पावन।
भर जाता खुशियों से दामन।।२४।।

शरारतें यादें मन भावन।
राखी लेकर आता सावन।।२५।।

स्मृतियाँ बचपन की लुभाएँ।
परत दर परत खुलती जाएँ।।२६।।

सोंधी-सुगंधित-सरस-सुवास।
तन-मन में भर देती उजास।।२७।।

जिसने दूषित नजर उठाई।
तुमने उसको धूल चटाई।।२८।।

बहन अकेली जब घबराती।
देख तुम्हें हिम्मत आ जाती।।२९।।

हर नाते से बढ़कर भ्राता।
हर विपदा में बनता त्राता।।३०।।

माँगूँ एक न हिस्सा तुमसे।
जुड़े रहो तुम पूरे मुझसे।।३१।।

बना रहे नित नेह तुम्हारा।
बना रहे घर बार तुम्हारा।।३२।।

बँधी कलाई नेहिल राखी।
बने अतुलित प्रेम की साखी।।३३।।

धीर गंभीर अति बलशाली।
रहो सुखी नित वैभवशाली।।३४।।

भाई तुम पर नेह अगाधा।
हर सुख-दुख तुमने ही साधा।।३५।।

मात-पिता का तुम्हीं सहारा।
तुम बिन उनका कहाँ गुजारा।।३६।।

धुरी तुम्हीं हो पूरे घर की।
पाओ खुशियाँ दुनिया भर की।।३७।।

कभी न अपना नेह छुड़ाना।
कभी बहन को भूल न जाना।।३८।।

बच्चों के तुम मामा प्यारे।
तुम चंदा तो वो हैं तारे।।३९।।

सब बहनों के प्यारे भाई।
कृपा करें तुम पर रघुराई।।४०।

जब-जब जग में जनम लूँ, मिले तुम्हारा साथ।
दुनिया सारी नाप लूँ, लिए हाथ में हाथ।।

जुग-जुग तक जग में रहें, मुद-मंगल त्यौहार।
मन-मानस करते रहें, खुशियों की बौछार।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Saturday, 19 August 2023

तीज मनातीं रुक्मिणी...

तीज मनातीं रुक्मिणी…

सावन आया जानकर, देखा सम्यक् वार।
तीज मनातीं रुक्मिणी, कर सोलह सिंगार।।

चूड़ीं बिछुवे करधनी, गल मुक्तामणि माल।
पाँव महावर शोभता, बेंदी शोभे भाल।।

राधा झूला देखकर, खड़ी पकड़कर डाल।।
तुम बिन सब सूना लगे, आओ मदन गुपाल।।

तुम बिन कुछ सूझे नहीं, समझ न आए रोग।
जोगन -सा मन हो गया, रुचें न जग के भोग।।

तज क्यों हमको चल दिए, क्यों काढ़ा ये बैर ?
जहाँ रहो तुम खुश रहो, सदा मनाएँ खैर।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
“दोहा संग्रह” से

Monday, 14 August 2023

मेरी माटी मेरा देश...

मेरी माटी मेरा देश….

मेरी माटी मेरा देश।
निर्मल स्वच्छ रहे परिवेश।
दृष्टि मलिन न डाले कोई,
दूर तलक जाए संदेश।

© सीमा अग्रवाल
चित्र गूगल से साभार

आया पर्व पुनीत...

आया पर्व पुनीत….

मुक्त हुए बंदी कारा से,
हुई हमारी जीत।
याद दिलाने कुर्बानी की,
आया पर्व पुनीत।

बहकी-महकी सकल दिशाएँ,
सुरभित है परिवेश।
थिरक रहा है आज खुशी से,
अपना भारत देश।
कण-कण से सृष्टि के देखो,
फूट रहा संगीत।

गरज बरसकर मेघ गगन से,
करें यही संकेत।
शुद्ध भावना मन में जिसके,
मिले उसे अभिप्रेत।
आज हुए पानी-पानी जो,
हमें समझते क्रीत।

आनंदित सब भारतवासी,
जन-गण-मन उल्लास।
हुई कामना फलित हमारी,
आया दिन वह खास।
आज गा रहा बच्चा-बच्चा,
आजादी के गीत।

मर मिटे जो देश पे, उनके
याद करें अवदान।
व्यर्थ नहीं जाने देंगे हम,
उनका यह बलिदान।
वीर सपूतों पर भारत के,
उमड़ रही है प्रीत।

लापरवाही त्यागें सब जन,
रखें देश का ध्यान।
अपने प्राणों से बढ़कर हो,
मातृभूमि का मान।
गलत नहीं जब कर्म हमारे,
क्यों हों हम भयभीत।

ऐरा-गैरा आ अब कोई,
रच न सके उत्पात।
बंद रखें हम मुट्ठी अपनी,
लगा न पाए घात।
बनें सिरमौर फिर हम जग के,
दोहराएँ अतीत।।

याद दिलाने कुर्बानी की,
आया पर्व पुनीत।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
मनके मेरे मन के से


Saturday, 12 August 2023

उठो, जागो, बढ़े चलो बंधु...(अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस पर विशेष)

उठो, जागो, बढ़े चलो बंधु...


उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु,
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

सपने सतरंगी आगत के,
सजें तुम्हारी आँखों में।
जज्बा जोश लगन सब मिलकर,
भर दें उड़ान पाँखों में।

रखकर गंतव्य निगाहों में,
अर्जुन सम तीर चलाओ।
उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु,
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

तुम युवक ही रीढ़ समाज की,
टिका है भविष्य तुम्हीं पर।
तुम्हीं देश के कर्णधार हो,
नजरें सभी की तुम्हीं पर।

निज ऊर्जा, महत्वाकांक्षा से
ऊँचा तुम इसे उठाओ।
उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु,
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

मंजिल चूमे कदम तुम्हारे,
भरी हो खुशी से झोली।
देख तुम्हारे करतब न्यारे,
नाचें झूमें हमजोली।

देश तरक्की करे चहुँमुखी,
अग जग में मान बढ़ाओ।
उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु,
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

कुदरत के लघु अवयव को भी,
क्षति न कभी तुम पहुँचाना।
पूज चरण पीपल-बरगद के,
बैठ छाँह में सुस्ताना।

दीन-हीन निरीह जीवों को,
जीवन की आस बँधाओ।
उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु,
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

असामाजिक तत्व समाज के
खड़े राह को रोकें तो,
डाह भरे निज सम्बन्धी भी
छुरा पीठ में भोंकें तो,

करके नजरंदाज सभी को
पथ अपना सुगम बनाओ।
उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु,
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

– ©® डॉ0 सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
साझा काव्य संग्रह ” वेदांत ” में प्रकाशित

Saturday, 29 July 2023

फ़ितरत अपनी-अपनी...

फ़ितरत अपनी अपनी…

जान जाते जो तुम्हें हम, दिल न यूँ तुमसे लगाते।
क्यों जगाते कामनाएँ, चाहतों को पर लगाते ?

जानते जो बेवफाई, है तुम्हारी फ़ितरतों में,
जिंदगी के राज अपने, क्यों तुम्हें सारे बताते ?

जो पता होता हमें ये, तुम नहीं लायक हमारे,
किसलिए तुमको रिझाने, महफिलें दिल की सजाते ?

जो भनक होती जरा भी, है तुम्हारी प्रीत झूठी,
देख तुमको पास हम यूँ, होश क्यों अपने गँवाते ?

था यही बस ज्ञात हमको, तुम हमारे नित रहोगे,
इसलिए हर बात दिल की, फ़ितरतन तुमको सुनाते।

हर कदम देना दगा बस, कूट फ़ितरत थी तुम्हारी।
काश, इक पल तो कभी इन, हरकतों से बाज आते।

आरियाँ दिल पर चलाते, तोड़ कर विश्वास मन का,
क्या गुजरती चोट खा यूँ, काश तुम ये जान पाते ।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Friday, 28 July 2023

फितरत दुनिया की....

फितरत दुनिया की…

ये तो दुनिया की फितरत है,
अपना कहती फिर छलती है।
 मुँह पर करती मीठी बातें,
पर पीछे चालें चलती है।

किए बड़े थे उसने वादे।
मगर नहीं थे नेक इरादे।
झूठ खुला तो जाना, कैसे-
चतुराई रूप बदलती है।

मीठी बोली में विष-गोली।
नज़र बचाकर उसने घोली।
भाँप न पाया दिल ये मेरा,
इसमें मेरी क्या गलती है।

दिल पर जो छुपछुप घात करे।
छल से आहत ज़ज्बात करे।
वाकिफ़ रहे सदा इस सच से,
आह भी एक दिन फलती है।

जग में सूरज- चाँद-सितारे।
आते – जाते बारी – बारी।
दिन भी सदा न सबका रहता,
रात भी सभी की ढलती है।

कभी किसी की रातें लम्बी।
कभी किसी के दिन बढ़ जाते।
भाग बराबर मिलता सबको,
समता से दुनिया चलती है।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Tuesday, 25 July 2023

स्मृति-बिम्ब उभरे नयन में...

स्मृति-बिम्ब उभरे नयन में….

स्मृति-बिम्ब उभरे नयन में ….

दुआ-बद्दुआ जिस-जिस से मिली, फलती रही।
किस्मत भी टेढ़ी-मेढ़ी, चाल अपनी चलती रही।

झुलसता रहा जीवन, संघर्ष-अनल-आवर्त में,
प्रीत-वर्तिका भी मद्धम, बीच हृदय जलती रही।

नेह-प्यासा मन भ्रमित हो, तप्त मरू तक आया,
मरीचिका-सी जिंदगी, भुलावा दे-दे छलती रही।

साँझ ढले घिर आया, तमस अमा का जिंदगी में,
भीगी-भीगी सी शम्आ, बुझती रही जलती रही।

उफ ! कैसा नूर था, उस चन्द्र-वलय से आनन में,
हर शब ही मन में चाँदनी, घुलती-पिघलती रही।

यूँ ही जगते रात बीती, नींद कहाँ और चैन कहाँ ?
स्मृति-बिम्ब उभरे नयन में, चित्रपटी चलती रही।

तामझाम सब समेट जग से, बैठी ‘सीमा’ राह में,
मौत दर तक आते-आते, जाने क्यों टलती रही।

©-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

'मृगतृषा' से

Wednesday, 19 July 2023

वक्त ये कितना कड़ा है....


वक्त ये कितना कड़ा है।
किस कदर तनकर खड़ा है।

कौन किससे क्या कहे अब,
बंद मुँह ताला जड़ा है।

सत्य लुंठित सकपकाया,
एक कोने में पड़ा है।

चल रहा है चाल सरपट,
झूठ पैरों पर खड़ा है।

देख तो ये ढीठ कितना,
बात पर अपनी अड़ा है।

बात ऐसी कुछ नहीं थी,
बेवजह ही लड़ पड़ा है।

शोक-निमग्न सारा चमन,
पुष्प असमय ही झड़ा है।

होता नहीं कुछ भी असर,
आदमी चिकना घड़ा है।

देख रोता आज जग को,
दर्द अपना हँस पड़ा है।

इस दहलती जिंदगी में,
हौसला सबसे बड़ा है।

होश में ‘सीमा’ न कोई,
बिन पिए जग बेबड़ा है।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Thursday, 13 July 2023

बरसात...

बरसात…

दिल्ली से भी दिल्लगी, कर बैठी बरसात।
पानी-पानी हो रही, नाजुक हैं हालात।।

किसी तरह अब जल्द ही, सुलझें ये हालात।
हर पल मन में खौफ है, बिगड़ न जाए बात।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
फोटो- गूगल से साभार

शंभु जीवन-पुष्प रचें...

शंभु जीवन-पुष्प रचें….

शंभु जीवन-पुष्प रचें, गौरा पूरें गंध।
दोनों के सहयोग से, सम्पूरित मृदु बंध।।

करुणा के आगार शिव, मन मेरा कविलास।
हृदय-कमल में वास हो, रहें नित्य ही पास।।

हो देवों के देव तुम, नहीं आदि-अवसान।
करो कृपा निज भक्त पर, आशुतोष भगवान।।

सार तुम्हीं संसार के, करुणा के अवतार।
मन को निर्मल शुद्ध कर, हरते सभी विकार।।

महिमा भोलेनाथ की, अगजग में है व्याप्त।
जो भी जो कुछ माँगता, हो जाता वह प्राप्त।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

चित्र गूगल से साभार

Sunday, 9 July 2023

सावन बरसता है उधर...

सावन बरसता है उधर….

सावन बरसता है…..

सावन बरसता है उधर, इधर दो नैन बरसते हैं।
चाह में तुम्हारी आज भी हम, दिन-रैन तरसते हैं।

प्यास-तपन सब मिटी, धरा हर्ष-मगन इठलाए।
आक-जवास के जैसे, मेरे अरमान झुलसते हैं।

जाकर फिर न पलटे, परदेसी कहाँ तुम भूले ?
खोज में कबसे तुम्हारी, हम दर-दर भटकते हैं।

तसव्वुर में संग तुम्हारे, यूँ तो हम जी लेते हैं।
पर एक झलक पाने को, ये मन-प्रान तरसते हैं।

बिन तुम्हारे सूना-सूना, घर का कोना-कोना।
आँगन तरसता है, सूने दर-ओ-दीवार तरसते हैं।

कितना तुम्हें चाहा, पर जुबां पे नाम न आया।
कहने में बात दिल की, हम अब भी हिचकते हैं।

बीच भँवर में छोड़ नैया, जाने किस ओर मुड़े।
मिल बुने जो साथ तुम्हारे, वो ख्वाब किलसते हैं।

रक्खे तुम्हें सलामत, दुआ कुबूले रब ‘सीमा’ की।
करुण रुदन से आर्तस्वरा के, पाहन भी पिघलते हैं।

©  डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र)

Saturday, 8 July 2023

अपना नैनीताल...

अपना नैनीताल

साठ मनोरम तालयुत, भव्य रूप अवदात।
षष्ठिखात के नाम से, हुआ प्रथम विख्यात।।

लिए सती-शव शिव चले, होकर जब बेचैन।
तन के अनगिन भाग में, गिरे यहीं थे नैन।।

मंदिर देवी का बना, पाया नैना नाम।
भक्तों के उद्धार हित, महापुण्य का धाम।।

अत्रि, पुस्त्य और पुलह, पौराणिक ऋषि तीन।
गुजर रहे इस मार्ग से, रुके    प्यास - आधीन।।

नैसर्गिक सौंदर्य यहाँ, बिखरा देख अकूत।
बढ़ी रमण की लालसा, हुआ रिदय अभिभूत।

खोदी भू त्रिशूल से, लेकर प्रभु का नाम।
त्रिधार युत ताल बना, त्रिऋषि सरोवर धाम।।

पी. वैरन की कल्पना, हुई सत्य साकार।
झीलों की नगरी बनी, मिला भव्य आकार।।

ये बर्फीली चोटियाँ, उतरे ज्यों घन पुंज।
मन को हरती वादियाँ, लता गुल्म औ कुंज।।

नीम करौरी तीर्थ है, कहते कैंची धाम।
बाबा के आशीष से, सधते सारे काम।।

छटा अनूठी रात की ,जगमग करतीं झील।
लहर-लहर बल्वावली, दीपित ज्यों कंदील।।

स्नो व्यू और हनी बनी, दृश्य नयनाभिराम।
हरीतिमा पसरी यहाँ, मोहक सुखद ललाम।।

हिम-आच्छादित चोटियाँ, ऊपर नैना पीक।
चप्पा-चप्पा शहर का, दिखे यहाँ से नीक।।  

लैला-मजनू पेड़ दो, बने झील की शान।
मौसम में बरसात के, करते आँसू दान।।

हरी-भरी हैं वादियाँ, सात मनोरम ताल।
मौसम जब अनुकूल हो, आएँ नैनीताल।।

© डॉ. सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी, मुरादाबाद

Thursday, 6 July 2023

एक मुक्तक

महल चिन नेह का निर्मल, सुघड़ बुनियाद रक्खूँगी।

महल चिन नेह का निर्मल, सुघड़ बुनियाद रक्खूँगी।
तरन्नुम में सदा मधुमय, सरस संवाद रक्खूँगी।
सदा ही गूँजता मन में, तराना प्रेम का अपने।
कि यादों से भरा ये दिल, सदा आबाद रक्खूँगी।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Tuesday, 4 July 2023

आया सावन झूम के...

ध्यान-उपवास-साधना, स्व अवलोकन कार्य।

ध्यान-उपवास-साधना, स्व अवलोकन कार्य।
हितकर चातुर्मास में, धर्म-कर्म-औदार्य।।

बरसे बादल झूम के, आया सावन मास।
रोम-रोम से फूटता, धरती का उल्लास।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Saturday, 1 July 2023

फितरत दुनिया की....

फितरत दुनिया की…

इस दुनिया की ये फितरत है।
अपना कहती फिर छलती है।
बाहर- बाहर मीठी बातें,
पर भीतर चालें चलती है।

किए बड़े थे उसने वादे।
मगर नहीं थे नेक इरादे।
झूठ खुला तो जाना, कैसे
चतुराई रूप बदलती है।

मीठी बोली में विष-गोली।
नज़र बचाकर उसने घोली।
भाँप न पाया दिल ये मेरा,
इसमें मेरी क्या गलती है ?

दिल पर जो छुपछुप घात करे।
छल से आहत जज्बात करे।
वाकिफ सदा रहे इस सच से,
आह भी एक दिन फलती है।

जग में सूरज- चाँद-सितारे।
आते – जाते बारी – बारी।
दिन भी सदा न सबका रहता,
रात भी सभी की ढलती है।

कभी किसी की रातें लम्बी।
कभी किसी के दिन बढ़ जाते।
भाग बराबर मिलता सबको,
समता से दुनिया चलती है।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Sunday, 18 June 2023

तके अमावस मौन...

चाँद नभ से दूर चला, तके अमावस मौन।
विरह-विदग्धा यामिनी, व्यथा सुनेगा कौन ?।।

© सीमा अग्रवाल

जिगर कॉलोनी, मुरादाबाद

Saturday, 17 June 2023

पितृ दिवस पर...

पितृ दिवस के शुभ अवसर पर प्रिय पिता की स्मृतियों को समर्पित मेरे द्वारा रचित चंद दोहे...

दिनभर के व्यापार का,      पिता रचे मजमून।
घर-भर की रौनक पिता, पिता बिना सब सून।।

काँधे पर अपने बिठा, खूब करायी सैर।
छोटी सी भी चोट पर, सदा मनायी खैर।।

तुम मुखिया परिवार के, रखते सबका ध्यान।
मिली तुम्हारे नाम से,    हम सबको पहचान।।

सबका ही हित साधते, किया न कभी फरेब।
पिता  तुम्हें  हम  पूजते,     तुम  देवों के देव।।

चिर स्मरणीय तात तुम, सदा रहोगे याद ।
मन से मन में गूँजता,  मूक बधिर संवाद।।

किया नहीं संग्रह कभी, फैले कभी न हाथ।
किस्मत से ठाने रहे,    नहीं  झुकाया माथ।।

ज्ञाता  थे  कानून  के,  देते   राय    मुफीद।
उनके कौशल ज्ञान की, दुनिया बनी मुरीद।।

लालच कभी किया नहीं, सिद्ध किया न स्वार्थ।
राय सभी को मुफ्त दी,      कर्म किए परमार्थ।।

भूले  अपने  शौक  सब,   हमें  दिखाई   राह।
पथ प्रशस्त सबका किया, देकर सही सलाह।।

धुर विरोधी भाग्य-कर्म,        निभती कैसे प्रीत।
जिस पथ से भी तुम चले,भाग्य चला विपरीत।।

खुद्दारी ईमान सच, सहनशीलता न्याय।
गुँथे आप में इस तरह, हों जैसे पर्याय।।

आए कितने ताड़ने,   धन-दौलत ले साथ।
सच से मुँह फेरा नहीं, सदा निभाया साथ।।

माँ पत्नी तनया बहन, दिया सभी को मान।
कोई  तुमसे  सीखता, नारी   का   सम्मान।।

सीखा तुमसे ही प्रथम, अनुशासन का अर्थ।
अभेद्य नहीं था कुछ तुम्हें, तुम थे सर्व समर्थ।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Thursday, 15 June 2023

माना तुम्हारे मुक़ाबिल नहीं मैं...

माना तुम्हारे  मुक़ाबिल  नहीं मैं...

माना तुम्हारे  मुक़ाबिल  नहीं मैं।
पर इतनी भी नाक़ाबिल नहीं मैं।

खुद को समझूँ खुदा, मूढ़ और को,
हूँ, लेकिन इतनी ज़ाहिल नहीं मैं।

काम जो भी मिला तन-मन से किया,
कपट औ झूठ में शामिल नहीं मैं।

समझती हूँ चाल बेढब सभी की,
होश पूरा मुझे, ग़ाफिल नहीं मैं।

सिर्फ दिखावे की हों बातें जहाँ,
मज़मे में ऐसे दाखिल नहीं मैं।

वजूद मेरा मिल्कियत है मेरी,
कृपा का किसी की, हासिल नहीं मैं।

मुझको निरंतर चलते ही जाना,
दरिया हूँ बहता, साहिल नहीं मैं।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Tuesday, 6 June 2023

नित सुरसा सी बढ़ रही....

नित सुरसा सी बढ़ रही, लालच-वृत्ति दुरंत।
कहाँ रुकेगी लालसा, कहाँ स्वार्थ का अंत।।

मन में है दुविधा बड़ी, जाए तो किस ओर।
सोच न पाए मन विकल,  हुई रैन से भोर।।

रख मत जोड़बटोर कर, नश्वर सब सुखसाज।
माटी में मिलते दिखे,        कितने तख्तोताज।।

लिप्सा तज संतोष-धन, मन में करो निवेश।
शाश्वत सुख की संपदा, हर लेती हर क्लेश।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

नित सुरसा सी बढ़ रही....

नित सुरसा -सी बढ़ रही, इच्छा शक्ति दुरंत।

नित सुरसा -सी बढ़ रही, इच्छा शक्ति दुरंत।
कहाँ रुकेगी लालसा, कहाँ स्वार्थ का अंत।।

मन में है दुविधा बड़ी, जाए तो किस ओर।
सोच न पाए मन विकल, हुई रैन से भोर।।

रख मत जोड़बटोर कर, नश्वर सब सुखसाज।
माटी में मिलते दिखे, कितने तख्तोताज।।

लिप्सा तज संतोष-धन, मन में करो निवेश।
शाश्वत सुख की संपदा, हर लेती हर क्लेश।।

© सीमा अग्रवाल

Sunday, 28 May 2023

किन्नर व्यथा....

किन्नर-व्यथा …

हमें भी तो जना तुमने, पिता का खून थे हम भी।
कलेजा क्यों किया पत्थर, सुनें तो माँ जरा हम भी।
दिखा दो एक भी ऐसा, कमी कोई नहीं जिसमें,
अधूरे हम चलो माना, कहाँ पूरे रहे तुम भी।

हमें किन्नर कहा जग ने, किया सबसे अलग हमको।
किया छलनी सवालों से, कहा बंजर नसल हमको।
हमें घर से निकाला क्यों, दिए आँसू खुशी लेकर,
हमारे वो खुशी के पल, करो वापस कभी हमको।

हमारे दर्द के किस्से , सुनेगा क्या जमाना ये।
हमें आँसू दिए भर-भर, हमें अपना न माना ये।
कहें भी क्या किसी से हम, यहाँ सब स्वार्थ में रत है,
खुशी में खूब गोते खा, भरें अपना खजाना ये।

खुशी जब-जब मिले तुमको, हमारा शुभ लगे आना।
खुशी में झूम कर सबकी, बजा ताली चले जाना।
हमारी एक ताली में, छिपे आँसू हजारों हैं,
तुम्हारी एक गलती का, उमर भर घूँट पिए जाना।

उड़ाकर नोट की गड्डी, भला कहते स्वयं को तुम।
गिनो आँसू हमारे भी, कभी फुरसत मिले तो तुम।
खुशियाँ छीन कर सारी, भिखारी ही बना डाला,
नपुंसक हैं अगर हम तो, कहो कैसे जनक हो तुम?

जने किसके कहाँ जनमे, नहीं कुछ ज्ञात है हमको।
यही दलदल हमारा घर, यही बस याद है हमको।
घुटी साँसें गले सूखे, नयन गीले भरे आँसू,
बजा ताली कमा खाना, यही सौगात है हमको।

कोख वही सेती है हमको,बीज वही पड़ता है हममें।
बिगड़ा मेल गुण-सूत्रों का, जो रह गयी कमी कुछ हममें।
लाडले हो तुम मात-पिता के, हम उनके ठुकराए हैं।
एक ही माँ के जाये हम-तुम, अंतर क्या तुममें हममें ?

जिस जननी ने जाया हमको, किया उसने ही हमें पराया।
जिस पिता का खून रगों में, उसे भी हम पर तरस न आया।
अन्याय समाज का अपनों का, जन्म लेते ही हमने झेला।
उलझे रहे नित प्राण हमारे, जीवन के सम-विषम में।

पूर्ण देह होकर भी रहते, कितने बंजर बीच तुम्हारे
हमें नजर भर देख सके न, दिए किसने दृग मीच तुम्हारे?
पहचान हमारी छीनने वालों, खुद को सर्वांग समझने वालों !
मन के चक्षु खोलो, दिखेंगे; श्वेत वसन पर कीच तुम्हारे!

माँ की ममता, मातृभूमि सुख, चख न पाए कभी हम।
दर्द को अपने दिल में समेटे, घुटते आए सदा हम।
फेर मुँह अनजान डगर पर, छोड़ा मात-पिता ने।
भार गमों का हँसते-रोते, ढोते आए सदा हम।

देवी-देव तुम मन-मंदिर के, तुम्हें जपेंगे तुम्हें भजेंगे।
जनें न चाहे अगली पीढ़ी, पर हम तुमको नहीं तजेंगे।
अपना कहकर हमें पुकारो, सीने से लगाकर देखो।
तज देंगे हर सुख हम अपना, सेवा तुम्हारी सदा करेंगे।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Friday, 26 May 2023

दोहा-गीत

हमने तुमको दिल दिया…

हमने तुमको दिल दिया, तुमने आँसू-भार।
प्रेम-समर में पाँव रख, पायी हमने हार।।बनते-बनते काम में, देती पलटी मार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।

शब्द रिदय पर यूँ लगे, जैसे असि की धार।
चटक गया दिल काँच सा, टुकड़े हुए हजार।
टूटे दिल का कर रहे, आँसू से उपचार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

ख्वाब अधूरे ही लिए, लिए बुझे अरमान।
गम को सीने से लगा, लौटे पी अपमान।।
ठोकर खायी बीच में, पड़ी वक्त की मार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

जीवन विपदा से भरा, तनिक नहीं आराम।
आन फँसे मझधार में, तड़पें आठों याम।।
कैसे नौका पार हो, रूठा खेवनहार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

हाय ! घड़ी मनहूस में, लगा प्रेम का रोग।
योग मिलन का था नहीं, होना लिखा वियोग।।
चारों खाने चित गिरे, मिला नहीं आधार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

बाजी निकली हाथ से, हर पल मन में सोच।
दे आया कब कौन हा, जा उसको उत्कोच।।
हालत दिल की देखकर, रोते नौ-नौ धार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

जिससे मन की बात की, लगी उसी की टोक।
उस गलती का आज भी, मना रहे हम शोक।
राह न कोई सूझती, बंद दिखें सब द्वार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

आँसू की सौगात दे, छोड़ चले मझधार ।
यादें-तड़पन-करवटें, करते मिल सब वार।।
मन पर भारी बोझ है, आता नहीं करार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

दो गोलक में नैन के, सपने तिरें हजार।
कुछ होते साकार तो, कुछ हो जाते खार।।
मन का नाजुक आइना, चटके बारंबार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

साँस चले ज्यों धौंकनी, नैन चुएँ पतनार।
प्रोषितपतिका नार नित, जीती मन को मार।।
कैसे हो ‘सीमा’ मिलन, खड़ी बीच दीवार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Thursday, 25 May 2023

रोम-रोम में राम....


रोम-रोम में राम….

कण-कण में श्रीराम हैं, रोम-रोम में राम ।
मन-मंदिर मेरा बने, उनका पावन धाम ।।

तोड़ न कोई राम का, निर्विकल्प हैं राम।
राम सरिस बस राम हैं, और न कोई नाम।।

लोभ- मोह में घिर मनुज, हुआ बुद्धि से मंद।
आएँगे किस विध प्रभो, मन की साँकल बंद।।

रिदय कामनागार तो, कामधेनु हैं आप।
एक छुअन भर आपकी, मेटे हर संताप।।

तेरा-मेरा मेल क्या, तू दाता मैं दीन।
तू सबका सिरमौर है, मैं लुंठित मतिहीन।।

जप ले मनके नाम के, मेटें मन के ताप।
राम नाम के जाप से, धुल जाते सब पाप ।।

राम सरिस हो आचरण, राम सरिस हो त्याग।
मिटें तामसी वृत्तियाँ, जागें जग के भाग।।

राम-नाम सुमिरन करो, कट जाएँ भव-फंद।
कमल-कोष से मुक्त हो, उड़ते ज्यों अलिवृंद।।

राम हमारी आस्था, राम अमिट विश्वास।
राम सजीवन प्राण हित, राम हमारी श्वास।।

राम नाम सुमिरन हरे, त्रिविध जगत के ताप।
साँसें अनथक कर रहीं, राम नाम का जाप।।

राम-राम के जाप में, हुए सदा उत्तीर्ण।
रोम-रोम पर देख लो, राम-नाम उत्कीर्ण।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Tuesday, 23 May 2023

आज इस सूने हृदय में....

आज इस सूने हृदय में….

आज इस सूने हृदय में,
याद बस तेरी मचलती।
सोच हावी हो रिदय पर,
भाव हर कोमल कुचलती।

तुम हमारे कुछ नहीं, पर
याद आते हो सतत क्यों ?
सुन तुम्हारी मुश्किलों को
रह न पाते हम विरत क्यों ?

वेदना में देख तुमको,
क्यों नयन से पीर झरती ?
कलप उठतीं भावनाएँ,
वासना के चीर हरती।

क्यों हमें ये लग रहा है,
न अब कभी मिल पाएँगे।
नेह के वो पुष्प मन में,
न अब कभी खिल पाएँगे।

तुम हमें चाहो न चाहो,
दिल तुम्हें हम दे चुके हैं।
चाहना में घुल तुम्हारी,
हम तुम्हारे हो चुके है।

दुआ नित दिल से निकलती,
रहो सुखी संपन्न सदा।
कौन जाने भाग्य में पर,
क्या लिखा है, क्या बदा।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

कुछ मुक्तक....


कुछ मुक्तक…

(1)
भरे जो नेह की हाला, न प्याला वो कभी फूटे।
सिखाए जो सबक सच के, न शाला वो कभी छूटे।
खुशी जिनसे छलकती हो, जुड़ें वे तार सब मन के,
गुँथे मन-भाव हों जिसमें, न माला वो कभी टूटे।
(2)
डगर मुश्किल लगे कितनी, नहीं हटना पलट पीछे।
नजर में रख सदा मंजिल, बढ़े चलना नयन मींचे।
बहे विपरीत धारा के, वही पाता किनारा है,
न देना ध्यान दुनिया पर, भले अपनी तरफ खींचे।
(3)
उड़ानों का नहीं मतलब, गगन का नूर हो जाना।
भुलाकर दर्द अपनों के, खुशी में चूर हो जाना।
बड़े संघर्ष झेले हैं, तुम्हें काबिल बनाने में,
जिन्होंने पर दिए तुमको, उन्हीं से दूर हो जाना।
(4)
नियति ने कुछ नियत लमहे, हमें सबको नवाजे हैं।
कहीं कलरव कहीं मौना, कहीं घुटती अवाजें हैं।
कहीं दुख के विकल पल तो,कहीं नगमे खुशी के हैं,
कहीं काँधे चढ़े बच्चे, कहीं उठते जनाजे हैं।
(5)
मिली जिस काल आजादी, हुआ दिल चाक भारत का।
खुशी का पल गया करके, नयन नमनाक भारत का।
किए टुकड़े वतन के दो, हजारों जन हुए बेघर,
खिंची दीवार नफरत की, हुआ सुख खाक भारत का।
(6)
कभी थे फूल से कोमल, मगर अब शूल से लगते।
हुए जो दिल कभी इक जां, नदी के कूल से लगते।
तराने प्रेम के मेरे, मुझे ही आज छलते हैं,
बसी थी हर खुशी जिनमें, वही अब भूल से लगते।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Monday, 22 May 2023

किए जा सितमगर सितम मगर...


किए जा सितमगर सितम मगर….

किए जा सितमगर सितम मगर।
सर मेरे ये इल्जाम न कर।

जो जी में आए कर जी भर,
पर व्यर्थ मुझे बदनाम न कर।

गलती मुझसे जो हुयी नहीं,
जबरन वो मेरे नाम न कर।

हँसे न जग करनी पर तेरी,
ऐसा कोई तू काम न कर।

आपस की सब बातें अपनी,
कह बीच सभी के आम न कर।

मुझे गिरा नज़रों में सबकी,
ऊँचा तू अपना दाम न कर।

किया भरोसा तुझ पर मैंने,
उसका यूँ कत्ले आम न कर।

देख रहा करनी वह सबकी,
विधि को अपने तू वाम न कर।

आजा अब तो घर तू वापस,
काली जीवन की शाम न कर।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

ऐलान....

ऐलान कर दिया….

‘आजाद हो तुम आज से’, ऐलान कर दिया।
क्या अब कहें कहकर हमें, बेजान कर दिया।

नादान थे समझे नहीं, बातें जहर बुझी,
तुमने कहा हमने सुना, उस कान कर दिया।।

नाराजगी भी थी अगर, कहते हमें कभी
ये क्या कि बिन कुछ भी कहे, चालान कर दिया।

हमसे जफा करके दया, आयी नहीं तुम्हें !
कुछ तो कहो क्यों प्यार का, अपमान कर दिया।

टूटा हुआ दिल क्या करे, अवसाद के सिवा !
सिक्के उछाले प्यार का, भुगतान कर दिया।

बढ़ते गये नित फासले, किसकी लगी नजर !
लाकर खड़ा गम के हमें, दरम्यान कर दिया।

कितने सनम कर लो सितम, होता न अब असर,
नाजुक नरम दिल को पका, चट्टान कर दिया।

लाँघीं नहीं हमने कभी, तकरार में हदें,
ऊँचाइयाँ दे प्यार को, भगवान कर दिया।

देखा किए अनथक तुम्हें, हटती न थी नजर,
दिलो-जिगर अपना सभी, कुर्बान कर दिया।

दिल को यही इक रंज है, कैसे करे सबर,
महका हुआ हँसता चमन, वीरान कर दिया।

है स्वार्थ ही परमोधरम, जग का यही मरम,
इंसान को किसने यहाँ, हैवान कर दिया।

आना नहीं ‘सीमा’ कभी, अब इस जहान में,
अच्छे-बुरे हर कर्म का, भुगतान कर दिया।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Sunday, 21 May 2023

ऐलान कर दिया...

आजाद हो तुम आज से, ऐलान कर दिया।
क्या अब कहें कहकर हमें, बेजान कर दिया।

नादान थे समझे नहीं, बातें जहर बुझी,
तुमने कहा हमने सुना, उस कान कर दिया।।

नाराजगी भी थी अगर, कहते हमें कभी
ये क्या कि बिन कुछ भी कहे, चालान कर दिया।

हमसे जफा करके दया, आयी नहीं तुम्हें !
कुछ तो कहो क्यों प्यार का, अपमान कर दिया।

टूटा हुआ दिल क्या करे, अवसाद के सिवा !
सिक्के उछाले  प्यार का, भुगतान कर दिया।

बढ़ते गये नित फासले, किसकी लगी नजर !
लाकर खड़ा गम के हमें, दरम्यान कर दिया।

कितने सनम कर लो सितम, होता नहीं असर,
नाजुक नरम दिल को पका, चट्टान कर दिया।

तोड़ीं नहीं हमने कभी,  तकरार में हदें,
ऊँचाइयाँ दे प्यार को, भगवान कर दिया।

देखा किए अनथक तुम्हें, हटती न थी नजर,
दिलो-जिगर अपना सभी, कुर्बान कर दिया।

दिल को यही इक रंज है,  कैसे करे सबर,
महका हुआ हँसता चमन, वीरान कर दिया।

आँसू टपक झर-झर झरें, तुम पर नहीं असर,
हाजिर बला के स्वार्थ ने, फुरकान कर दिया।

है स्वार्थ ही परमोधरम, जग का यही मरम,
इंसान को किसने यहाँ,  हैवान कर दिया।

आना नहीं 'सीमा' कभी अब इस जहान में,
अच्छे बुरे हर कर्म का, भुगतान कर दिया।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Tuesday, 2 May 2023

चुनावी बयार...

अरे ये कौन नेता हैं, न आना बात में इनकी।

अरे ये कौन नेता हैं, न आना बात में इनकी।
पलट जाना मुकर जाना, लिखा है जात में इनकी।
कटोरा भीख का ले जब, चुनावी दौर में आएँ,
चटाना धूल तुम इनको, यही औकात है इनकी ।

जरूरत वोट की हो जब, गले लगते गरीबों के।
दिखाते भाव कुछ ऐसे, मसीहा हों गरीबों के।
नजर हटते पलट जाते, जरा देखो हँसी उनकी,
भिखारी से चले आते, भले बनते गरीबों के।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Monday, 1 May 2023

सूना आज चमन...

सूना आज चमन...

हौंस और उल्लास कहाँ अब,
बुझा-बुझा सा मन।
देख अभागी किस्मत अपनी,
रोता है  हर छन।

कितने अरमां कितने सपने,
नित अकुलाते थे।
पूरे होंगे सोच एक दिन,
हम इठलाते थे।
मधु-रसकण का वर्षण होगा,
था अनुमान सघन।

लदे सुखों से दिन थे जगमग,
हँसती थी राका।
अरमां भोले जब्त हुए सब,
पड़ा गजब डाका।
किर्च-किर्च सब ख्वाब हुए हैं,
चटक गया दरपन।

नहीं किसी से द्वेष हमें था,
सब तो थे अपने।
मिलजुलकर सब साथ रहेंगे,
देखे थे सपने।
रही मगर हर आस अधूरी,
सूना आज चमन।

दरकते आज रिश्ते-नाते,
कौन किसे जाने ?
रत हैं सभी स्वार्थ में अपने,
कौन किसे माने ?
रिसते छाले, बहते आँसू,
चुभते बिखरे कन।

चला कुचक्र नियति का ऐसा,
सूखा सुख-सागर।
रिस गया नेह-रस जीवन से,
रीती मन-गागर।
ताल मिला कर वक्त भाग्य से,
करे अजब नर्तन।

बँधी बहुत उम्मीद हमें थी,
सुख अब आएँगे।
दूर नहीं दिन जब खुशियों के,
बदरा छाएँगे।
ऐन वक्त पर सोयी किस्मत,
जाग उठी तड़पन।

खायी हमने मात सदा जो,
कमी हमारी थी।
सबको भला समझ लेने की,
हमें बिमारी थी।
दिल-दिमाग बिच इसी बात पर,
रहती नित अनबन।

सूना आज चमन....

© सीमा अग्रवाल, जिगर कॉलोनी, मुरादाबाद

"मनके मेरे मन के" से

Sunday, 23 April 2023

पग-पग पर हैं वर्जनाएँ....


पग-पग पर हैं वर्जनाएँ….

पग-पग पर हैं वर्जनाएँ।
सूखे घन- सी गर्जनाएँ।

गति नियति की अद्भुत,
अद्भुत उसकी सर्जनाएँ।

पल भर के ही भ्रूभंग पर,
टूटतीं लौह-अर्गलाएँ।

साथिन हैं जीवन भर की,
जीवन की ये विडंबनाएँ।

जो होना है होकर रहता,
काम न आतीं अर्चनाएँ।

राहें बदलती जीवन की,
टूटती – जुड़तीं श्रंखलाएँ।

सच कैसे भी हो न पाएँ,
मन की कोरी कल्पनाएँ।

अनगिन चोटें दर्द अथाह,
मुँह बिसूरती वंचनाएँ।

स्वत्व कैसा स्वजनों का,
वक्त पर जो काम न आएँ।

कोई तो अपना हो यहाँ,
जख़्म किसे कैसे दिखाएँ।

पी ले ‘सीमा’अश्क सभी,
आँखे नाहक छलछलाएँ।

© डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)
“चाहत चकोर की” से

Friday, 21 April 2023

कहमुकरी...

दिन भर जाने कहाँ वो जाता !
साँझ ढले घर वापस आता !
दरस को उसके दिल बेताब !
क्या सखि साजन ? ना मेहताब !

© डॉ.सीमा अग्रवाल

मुरादाबाद ( उ.प्र.)

Saturday, 15 April 2023

विधना खेले खेल....

पुष्पवाण साधे कभी, साधे कभी गुलेल।

पुष्पवाण साधे कभी, साधे कभी गुलेल।
हाथों में डोरी लिए, विधना खेले खेल।।

प्रक्षालन नित कीजिए, चढ़े न मन पर मैल।
काबू में आता नहीं, अश्व अड़ा बिगड़ैल।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Friday, 14 April 2023

कृषि-पर्व वैशाखी की सभी देशवासियों को अनेकानेक शुभकामनाएँ....

कृषि पर्व वैशाखी….

अपना भारत देश है, त्यौहारों का देश।
मिलजुल खुशियाँ बाँटना, छुपा यही संदेश।।

बैशाखी कृषि-पर्व है, मन में भरे उमंग।
मस्ती में झूमें कृषक, ढोलक-ताशे संग।।

फसल खड़ी तैयार है, घर-घर बाजत ढोल।
कृषक उमंगित नाचते, आज मगन जी खोल।।

गिद्दा-भँगड़ा कर रहे, हर्षित आज किसान।
भर-भर श्रम-फल दे रहे, खड़े खेत-खलिहान।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)
चित्र गूगल से साभार

Language: Hindi

काहे पलक भिगोय...

काहे पलक भिगोय ?

बात कलेजे से लगा, काहे पलक भिगोय ?
किस्मत में जो लिख गया, छीन न सकता कोय।।

मतलब के रिश्ते यहाँ, मतलब के सब मीत।
लगा न इनसे मोह मन, कर ले प्रभु से प्रीत।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद