नित सुरसा -सी बढ़ रही, इच्छा शक्ति दुरंत।
नित सुरसा -सी बढ़ रही, इच्छा शक्ति दुरंत।
कहाँ रुकेगी लालसा, कहाँ स्वार्थ का अंत।।
मन में है दुविधा बड़ी, जाए तो किस ओर।
सोच न पाए मन विकल, हुई रैन से भोर।।
रख मत जोड़बटोर कर, नश्वर सब सुखसाज।
माटी में मिलते दिखे, कितने तख्तोताज।।
लिप्सा तज संतोष-धन, मन में करो निवेश।
शाश्वत सुख की संपदा, हर लेती हर क्लेश।।
© सीमा अग्रवाल
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