देता सुर को त्रास था, करता पाप अनंत।
त्रिपुरारि कहलाए शिव, किया असुर का अंत।।
त्रिपुरासुर का अंत कर, दिया इंद्र को राज।
आज मुदित मन झूमता, सारा देव समाज।।
पावन गंगा नीर में, कर कातिक स्नान।
देव दिवाली देवता, करें दीप का दान।।
छाई है अद्भुत छटा, दमक रहे सब घाट।
देव दरस की लालसा, जोहें रह-रह बाट।।
छिटकी नभ में चाँदनी, कातिक पूनम रात।
काशी के गलियार में, झिलमिल दीपक-पाँत।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
Very Nice Poem 👍
ReplyDeleteThank you ❤️
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