Monday 30 November 2020

आवारा लड़के सा चाँद....

आवारा लड़के-सा चाँद...

रूप का उसके कोई न सानी  प्यारा-सा अलवेला चाँद
निहारे धरा को टुकुर-टुकुर गोल मटोल मटके-सा चाँद

चुपके-चुपके साँझ  ढले वह, नित  मेरी गली में  आता
नजरें बचा कर सारे जग से तड़के ही छिप जाता चाँद

कितना दौड़ूँ उसे पकड़ने पर हाथ न मेरे कभी वो आए
औचक छिटक जा पहुँचे नभ में माला के मनके-सा चाँद

पकड़ न आये शरारत उसकी शातिर वो बड़े हुनर वाला
रात-रात भर  विचरता अकेला  आवारा  लड़के-सा चाँद

-©®सीमा अग्रवाल

मुरादाबाद (उ.प्र.)

'मनके मेरे मन के' से

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