आवारा लड़के-सा चाँद...
रूप का उसके कोई न सानी प्यारा-सा अलवेला चाँद
निहारे धरा को टुकुर-टुकुर गोल मटोल मटके-सा चाँद
चुपके-चुपके साँझ ढले वह, नित मेरी गली में आता
नजरें बचा कर सारे जग से तड़के ही छिप जाता चाँद
कितना दौड़ूँ उसे पकड़ने पर हाथ न मेरे कभी वो आए
औचक छिटक जा पहुँचे नभ में माला के मनके-सा चाँद
पकड़ न आये शरारत उसकी शातिर वो बड़े हुनर वाला
रात-रात भर विचरता अकेला आवारा लड़के-सा चाँद
-©®सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)
'मनके मेरे मन के' से
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