Monday 22 February 2016

हाइकु

बंधन सारे
तोड़ के मैं आ जाऊं
पास तुम्हारे

मन ये चाहे
रहूं साथ तुम्हारे
हर हाल में

तुम जो कहो
हर बात मैं मानूं
कुछ ना माँगू

मैं अकिंचन
धनवती तुमसे
झूठ ना कहूँ

तुम जो नहीं
हर सुख अधूरा
मैं अभागिन

आ जाओ कभी
तो भर लूँ आँखों में
छवि तुम्हारी

चाहा है तुम्हें
सदा दिल ने मेरे
तुम्हें ही पूजा

तुम ही तुम
समाए हो दिल में
और ना दूजा

छूकर देखूं
सपना हो साकार
निहाल हो लूँ

देखे तुम्हें
कितने युग बीते
तुम ना आए

प्राण टिके हैं
जब तक जरा सी
आस है बाकी

पाकर तुम्हें
झर के बदली सी
मैं मिट जाऊं

कहाँ हो छुपे
कनु ! कान्हा से तुम
छलिया बड़े

~ सीमा

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