Thursday 11 February 2016

मेरे चाँद जरा आ जाना ~~~

मोहक छवि दिखा जाना
मेरे चाँद जरा आ जाना !
        अपलक तेरी राह तकी
        आँखें कैसी थकी थकी
        कर स्पर्श शीत करों से
        सारी तपन मिटा जाना !

मेरे चाँद जरा आ जाना !

        तुम तो हो स्नेह के सागर
        रीती अब तक मेरी गागर
        तरस तुम्हें गर आए जरा
        कुछ बूंदें छलका जाना !

मेरे चाँद जरा आ जाना !

        अंतिम प्रहर रात का आया
        पर तू कहीं नजर न आया
        इन उनींदी आँखों को मेरी
        थपकी देकर सुला जाना !

मेरे चाँद जरा आ जाना !

         यूँ ही बैठे राह में तेरी
        झपने लगें जो अँखियाँ मेरी
        चंद्रिका की धवल ओढ़नी
        आहिस्ता मुझे उढ़ा जाना
       
मेरे चाँद जरा आ जाना !

मोहक छवि दिखा जाना
मेरे चाँद जरा आ जाना !

~ सीमा

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