Sunday, 28 February 2016

आओ आज संकल्प लें मिलकर---

प्रकृति का श्रंगार हैं वृक्ष
आश्रय निरीह जीवों का
कितने जतन से रचती गौरैया
जोड़ तिनका तिनका
नीड़ निज प्यारा
कितने विश्वास से
छोड़ जाती चूजे अपने
आश्रय में उसके
जाती जब तिनका, दाना लेने
गिलहरी, सर्प, कपि
कितने जीव- जन्तु आश्रय पाते
लगे वक्ष से वृक्ष के
पर स्वार्थ लिप्त मानव
अपनी भौतिक
महत्वाकांक्षाओं के लोभ में
उजाड़ देता समूल
आशियाना उनका
चलाते वक्त कुठार
मन तनिक ना पसीजता
वृक्ष जो
अभिन्न अंग हमारे जीवन के,
प्राकृतिक शोधक वायु के,
शिव तुल्य
स्वयं जहर पीकर
शुद्ध वायु रूप अमृत बाँट
हमारी साँसों को
देते चेतना औ स्पंदन
शुद्ध रखते वातावरण
जीवनी शक्ति पाते हम उनसे
विभिन्न वस्तुएं जीवन यापन की
अंत समय आने पर
दाह क्रिया में भी
जब अपने सब
छोड़ देते साथ हमारा
एक वही निभाते साथ
हमारे लिए, हमसे पहले
खुद जल जाते
उपयोगिता उनकी असंदिग्ध
जानते हुए भी हम
क्यूँ बेदर्दी से
मनमाना दोहन करते उनका
जीवन पर्यंत
जाते- जाते भी
मृत शरीर के दाह हेतु
न्यूनतम दो वृक्षों की तो
बलि ले ही लेते हैं
कितने असहिष्णु
कितने संवेदनशून्य
हम उनके प्रति
क्यों नहीं मथता
भाव यह हमारे मन को
उनके संरक्षण में पलने वाले
कितने ही मासूम जीव जन्तुओं को
बेसहारा हम कर देते
छितरा देते परिवार उनका
अपने घोर स्वार्थ, लिप्सा
और अंधविश्वास के तहत
साथ ही  पर्यावरण भी
होता प्रदूषित कितना
बिगड़ जाता संतुलन प्रकृति का
हमारी इस
संकुचित लोलुप मनोवृत्ति से
आओ आज सब मिल
संकल्प यह लें
कि जीते जी
ना आने देंगे आँच वृक्षों पर
अपनी अपनी सामर्थ्यानुसार
रोपित करेंगे 
मन में भी ना लायेंगे
ऐसा प्रदूषित विचार
जिससे पहुंचे उन्हें जरा भी
आघात
साथ ही अंतिम इच्छा के रूप में
बसीयत में अपनी
जोड़ें यह भी
कि मृत निर्जीव शरीर हमारा
जलाया जाए
विद्युत शवदाह गृह में
ताकि महफूज रहें पेड़
बचा रहे धरती पर जीवन,
हरीतिमा, मधुर कूजन, कलरव
माँ प्रकृति रहे सदा सुहागन
हँसे मुस्कुराए
लुटाती रहे ममता
हम से नादान शिशुओं पर
पीढ़ी दर पीढ़ी

-डाॅ0 सीमा अग्रवाल
गोकुल दास हिन्दू गर्ल्स काॅलेज,
मुरादाबाद ( उ0 प्र0 )


Monday, 22 February 2016

हाइकु

बंधन सारे
तोड़ के मैं आ जाऊं
पास तुम्हारे

मन ये चाहे
रहूं साथ तुम्हारे
हर हाल में

तुम जो कहो
हर बात मैं मानूं
कुछ ना माँगू

मैं अकिंचन
धनवती तुमसे
झूठ ना कहूँ

तुम जो नहीं
हर सुख अधूरा
मैं अभागिन

आ जाओ कभी
तो भर लूँ आँखों में
छवि तुम्हारी

चाहा है तुम्हें
सदा दिल ने मेरे
तुम्हें ही पूजा

तुम ही तुम
समाए हो दिल में
और ना दूजा

छूकर देखूं
सपना हो साकार
निहाल हो लूँ

देखे तुम्हें
कितने युग बीते
तुम ना आए

प्राण टिके हैं
जब तक जरा सी
आस है बाकी

पाकर तुम्हें
झर के बदली सी
मैं मिट जाऊं

कहाँ हो छुपे
कनु ! कान्हा से तुम
छलिया बड़े

~ सीमा

Saturday, 20 February 2016

चमको चाँद निस्सीम निलय में ---

ज्यों देख गगन में चाँद पूर्ण
हुलसित उमंगित
हो उठता शांत जलधि
उठने लगतीं लहरें अपरिमित
आतुर हो कैसा उछलता
मधुर स्पर्श की चाह में
तब धैर्य, संयम भी
कुछ साथ न देता
टूट जातीं समस्त मर्यादाएं
ससीम भी तब
निर्बन्ध, निर्बाध
असीम हो जाता !
कुछ ऐसी ही दशा हो जाती है
इस शांत- स्थिर
मन की मेरे
दूरी से ही देख तुम्हें
उठने लगता ज्वार
शत- शत इच्छाएँ जाग्रत होतीं
हर्ष का पारावर न रहता
रोम- रोम आह्लादित होता !
चाहत होती
तुम तक आ
नन्हे करों से अपने
छूकर तनिक
महसूस करूं तुम्हें
पर हसरत कभी ये पूर्ण ना होती !
मेरे लिए तो
बस यही
परम सुख मेरा
कि प्रतिबिंब तुम्हारा
मन- मानस में
समाहित हो
शत- शत क्रीड़ाएं करता
लुकता, छिपता, ओझल होता
उफ !
कैसा अद्भुत
अप्रतिम
कुहक जाल बुनता !
रहना बस यूं ही
दैदीप्यान सदा
मन के निस्सीम निलय में मेरे
तुम्हारा होना
रोशन कर देता मेरा जहां
पल भर नजरों से
ओझल होना
ढक जाता स्याह चादर
सघन तिमिर की
मन पर मेरे !
- सीमा

Thursday, 11 February 2016

मेरे चाँद जरा आ जाना ~~~

मोहक छवि दिखा जाना
मेरे चाँद जरा आ जाना !
        अपलक तेरी राह तकी
        आँखें कैसी थकी थकी
        कर स्पर्श शीत करों से
        सारी तपन मिटा जाना !

मेरे चाँद जरा आ जाना !

        तुम तो हो स्नेह के सागर
        रीती अब तक मेरी गागर
        तरस तुम्हें गर आए जरा
        कुछ बूंदें छलका जाना !

मेरे चाँद जरा आ जाना !

        अंतिम प्रहर रात का आया
        पर तू कहीं नजर न आया
        इन उनींदी आँखों को मेरी
        थपकी देकर सुला जाना !

मेरे चाँद जरा आ जाना !

         यूँ ही बैठे राह में तेरी
        झपने लगें जो अँखियाँ मेरी
        चंद्रिका की धवल ओढ़नी
        आहिस्ता मुझे उढ़ा जाना
       
मेरे चाँद जरा आ जाना !

मोहक छवि दिखा जाना
मेरे चाँद जरा आ जाना !

~ सीमा

वक्त जब आड़े आता है ---

वक्त जब आड़े आता है
चाँद सूरज भी ढलते हैं
रुकते नहीं हार मानकर
नित नूतन हो चलते हैं
~ सीमा