तुझे छूने से भी डरती हूँ ए चाँद मेरे !
कहीं उजला तन ये तेरा मैला ना हो जाए
बस ये अहसास बहुत है जीने के लिए
कि तू है जमाने में सबसे करीब मेरे !
नजर का टीका लगा दिया है
पहले ही मुख पर तेरे
देखूं जो तुझे तो कहीं नजर ही
ना मेरी लग जाए
यूं तो आते जाते रहे हैं
पथिक इस मग से कितने
पर वो शख्स एक तू ही है
जो दिल में गहरे उतरा
रहे तू सदा सलामत
संग चाँदनी के अपनी
इल्तिजा यही बस मेरी
इक फेरा इधर भी करना
~ सीमा
No comments:
Post a Comment