राम नहीं, रावन भी नहीं
बस तुममें तुमको देखा है !
सबसे अलग सबसे जुदा
बस हमने तुमको देखा है !
छल नहीं, कोई छद्म नहीं
अहं नहीं, कोई दंभ नहीं
स्नेहिल नजरों से मंद-मंद
मुस्कुराते तुमको देखा है !
धवल चंद्र सम रूप तुम्हारा
वृत्त ज्यों निर्मल जल की धारा
स्त्रवनों में मधुरिम बतियों का
रस ढुलकाते तुमको देखा है !
यूँ तो दूर बहुत तुम पास नही
मिलने की भी कोई आस नहीं
आँखें मूंद पर जब भी देखा
अपने दिल में तुमको देखा है !
लुकते, छिपते, ओझल होते
कभी शांत कभी चंचल होते
इंदु सम अपने मन-मानस में
नित अठखेली करते देखा है !
तुम छाए हो जग में चाँद बन कर
आ रही चाँदनी मुझ तक छन कर
ऐसा प्यारा एक सपन सलोना
तड़के ही आँखों ने मेरी देखा है !
दुहाई यहाँ आने की तुम्हारे
दे रहे हैं ये पदचिन्ह तुम्हारे
अभी अभी हाँ अभी तो यहीं
मुक्त विचरते तुमको देखा है !
---- सीमा ----
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