जब जब कोशिश करती हूँ उसे भुलाने की ! 
तब और मचल उठती है तमन्ना, पाने की !
निष्ठुर सनम क्या कदर प्यार की जाने 
लिये बैठा है वो तो कसम, ना आने की ! 
दिल का गम आँखों से सावन बन बरसेगा
जगह मिली बादल को इन पलकों पर छाने की ! 
एक ना एक दिन तो दिल उसका पिघलेगा 
पूरी कर ले चाह वो अपनी, सितम ढाने की ! 
यूँ ही कैसे आए हँसी लबों पर बोलो 
कोई तो वजह हो आखिर, मुस्कुराने की ! 
ऐसे खफा हुआ कि मुड़ के ना देखा पीछे 
नाकाम रही हर कोशिश, उसे मनाने की ! 
--- सीमा ---
 
No comments:
Post a Comment