Monday 3 August 2015

ए रुह मेरी----

ए रुह मेरी ! तू चंद पलों को
जा प्रिय से मेरे मिलकर आ
जा दबे पाँव से चुपके चुपके
हाले दिल उनसे कहकर आ !

पड़ी माथे उनके एक अलक
जगाती प्यार की मधुर ललक
चूम आ उन उनींदी पलकों को
भर ला आँखों में प्रिय झलक

खुद को बिसारूँ उन्हें निहारूँ
छवि ऐसी मधुर आँककर ला !

सोये मिलें गर प्रियवर मेरे
लिये नयनों में ख्वाब मृदुल
गर्व से दीपित मुखमंडल पर
थिरकती हो मुस्कान अतुल

हौले से मासूम कपोलों पर
चुंबन मधुर अर्पित कर आ !

औरों का ख्याल तो रखते हैं
पर खुद की उन्हें परवाह नहीं
सबकी चाह करते हैं पूरी, पर
अपनी उनकी कोई चाह नहीं

तू प्यार से उनके तन मन को
सहला के सारी थकन मिटा !

भोली भाली शक्ल है उनकी
सबपे भारी अक्ल है उनकी
ऐसी निराली है उनकी अदा
देखेगी जो तू भी होगी फिदा

तुझे रुचे जो सबसे ज्यादा
छवि ऐसी एक छांटकर ला !

बहुत प्यारी हैं उनकी बातें
हँसते हँसते कट जाएँ रातें
कली मन की खिल जाती
जब होतीं प्यार की बरसातें

ले, सूनी अंखियों में अपनी
लाज का काजल आंजकर जा !

पहचान तो उन्हें तू लेगी ना
देख जा कुछ छवियाँ न्यारी
चाँद सा उजला रूप उनका
भोले शंकर सी सूरत प्यारी

बाँकी छवि कान्हा सी उनकी
तू दिल में अपने टाँककर जा !

भोली सी उस मुखाकृति पर
क्यों उदासी की परतें गहरी
पथ में इतने अवरोध हैं कैसे
जिंदगी जहाँ आकर है ठहरी

क्यूँ इतने गम पाले हैं मन में
तू भीतर उनके झाँककर आ !

ए रूह मेरी तू चंद पलों को
जा प्रिय से मेरे मिलकर आ
पावन रज उनके चरणों की
मस्तक पर मेरे लाके सजा !

करके पूरी ख्वाहिश ये मेरी
आहिस्ता मुझमें आन समा !

ए रूह मेरी-----

                         --- सीमा ---

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