Saturday 18 July 2015

जीवन अपना राम हवाले

घुमड़ आए हैं नील गगन में
गम के बादल काले-काले
ढुलक पड़े आँखों से सावन
रुके ना किसी के सम्हाले !

कितने दिनों की उमस समेटे
घुट रहा था भीतर ही भीतर
आज सब्र का बाँध टूट गया
खोल दिये सब दिल के ताले !

एक-एक कर मन-माला में
नाजुक सपने पिरो रहा था
मसल गए तूफां के हाथों
अरमां सब उसके मतवाले !

टप टप गिरते आँसू जमीं पर
मर्म व्यथा का खोल रहे हैं
कान खोलकर सुनो गौर से
कैसे दर्द भरे हैं उसके नाले !

आँखें धुँधली, राह अँधेरी
पथ की कोई पहचान नहीं
काँटे चुभते कदम- कदम
पाँव पड़े हैं अनगिन छाले !

कोई ना संगी साथी अपना
हर सुख लगता जैसे सपना
कभी तो पार लगेगी नैया
जीवन अपना राम हवाले !

                 --- सीमा ---

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