Sunday 26 April 2015

आशा : एक चिराग

हर बार
बना महल
सपनों का -
ढह गया !
खण्डहर में पर
एक चिराग -
जलता रह गया !
आया झंझावात
और वज्रपात हुआ !
ध्वस्त हुईं सब दीवारें
ऐसा प्रबल आघात हुआ !
सहता रहा प्रहार
पर हार न मानी उसने
फिर से उठने संवरने की
हठ मन में ठानी उसने !
एक-एक कर शान्त हुए
भाव सब जख्मी मन के
थामे रहा पर सदा
हाथ में वह-
आशा के मनके !
जलता रहा अकेला
सेंकता रहा हाथ
अपने ही अरमानों की
धधकती चिता पर
हर सुख जिसका
अश्क बनकर बह गया !

               --- सीमा अग्रवाल ---

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