याद हमें आता रह-रह कर,
अपना वही अतीत।
मधुर स्मृतियों में खो उसकी,
तिरें अधर पर गीत।
सभी पड़ोसी लगते अपने,
चाचा ताऊ बुआ।
आशीष दिया करते थे सब,
फलती सबकी दुआ।
मधुर संबंधों की फिर वही,
धारा बहे पुनीत।
गली मुहल्ले सब थे अपने,
खेले अनगिन खेल।
सुख की उन प्यारी सुधियों का,
कहाँ किसी से मेल।
नहीं द्वेष आता था मन में,
हार मिले या जीत।
आस-पास होते विद्यालय,
जाते हिलमिल साथ।
लेते थे आशीष बड़ों का,
झुका सभी को माथ।
काश पुनः दुहराएँ मिल सब,
वही पुरानी रीत।
छत से छत थीं जुड़ी सभी की,
मन से मन के तार।
चाँद-चाँदनी तारे जगमग,
लगते हीरक हार।
सधें वही सुर-ताल-लय फिर,
बहे वही संगीत।
वर्तमान की चकाचौंध से,
सिर बहुत चकराए।
खेल रहे जो खेल सभी अब,
जरा समझ न आए।
नहीं कहीं अब पड़े दिखाई,
आपस की वह प्रीत।
याद हमें आता रह-रह कर,
अपना वही अतीत।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
" गीत सौंधे जिंदगी के" से