Saturday, 16 August 2025

धन्य वसुदेव-देवकी...

धन्य वसुदेव-देवकी,  धन्य जसोदा-नंद।
उतरा आँगन आपके, पूर्ण कलाधर चंद।।

एक वंश - परिवार में, हुए देवकी - कंस।
एक उदर जनमे हरी, एक उदर विध्वंस।।      © सीमा
फोटोज गूगल से साभार 



Friday, 8 August 2025

धरती सिमटी रो रही...

धरती सिमटी रो रही,
अंबर भी बेचैन।
वक्त सिखाया और का,
लूट रहा सुख-चैन।

©सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Wednesday, 6 August 2025

आँख सभी की नम है...

ज्यादा है या कम है।
घेरे  सबको  गम है।

तनिक गौर से  देखो,
आँख सभी की नम है।

सुखी समझना पर को,
मन का महज वहम है।

झेल रहा दुख उतना,
जिसमें जितना दम है।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
"सजल संग्रह" से

Saturday, 2 August 2025

वे कभी जब बोलते हैं...

वे कभी जब बोलते हैं।
बस अनर्गल  बोलते हैं।

हैं प्रखर वक्ता शहर के।
गीत गाते  हर ब़हर के।
बोल सब उनकी जुबां पर,
भोर-संझा-दोपहर के।
आँख पर चश्मा चढ़ाए,
कुछ लिखा कुछ बोलते हैं।

सब गलत पर वो सही हैं।
जानते खुद कुछ नहीं हैं।
दोष मढ़ना, रोष करना,
आदतें उनकी रही हैं।
हर किसी की हैसियत वे,
रत्तियों में तोलते हैं।

वे कभी जब बोलते हैं।
बस अनर्गल  बोलते हैं।

सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Friday, 1 August 2025

बढ़ रहे हैं दुक्ख प्रतिपल...

बढ़ रहे हैं दुक्ख प्रतिपल,
किस तरह निस्तार होगा ?

सुध न कोई तन-बदन की,
बेखुदी में जी रही हूँ।
अटकलों को दुह रही बस,
आस-आसव पी रही हूँ।
कर खुदा पेशीनगोई,
क्या कभी उद्धार होगा ?

कब छँटेंगे मेघ गम के,
कब घटेगा घुप अँधेरा ?
कब किरण रवि की पड़ेगी,
कब धवल होगा सवेरा ?
तैरता जो नित नयन में,
क्या सपन साकार होगा ?

हो रही दोहरी कमर है,
किस तरह ये बोझ ढोऊँ ?
फिक्र में घुल रात रीते,
चैन से इक पल न सोऊँ।
छाँट दे कुछ भार मन का,
सच बहुत आभार होगा।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र )
"गीत सौंधे जिन्दगी के" से

Thursday, 31 July 2025

साँझ-सकारे कर ले मनवा...

साँझ-सकारे कर ले मनवा,
राम-नाम  का  जाप।
मिट जाएंगे राम-नाम से,
भव-भौतिक सब ताप।

राम शिरोमणि आदर्शों के,
मर्यादा के धाम।
रूप-रंग में सम्मुख जिनके,
फीका पड़ता काम।
कलयुग में भी त्रेतायुग सी,
राम-नाम की छाप।

दर्शन करने भव्य रूप के,
चलो अयोध्या धाम।
लाभ नयन ये पा जाएंगे,
बिन खरचे कुछ दाम।
पावन सरयू में डुबकी ले,
धुल जाएंगे पाप।

राम सरिस बस राम अकेले,
नहीं दूसरा नाम।
फेरूँ मनके राम-नाम के,
मैं तो सुबहो-शाम।
कौन नहीं जो जाने जग में,
राम-नाम परताप।

राग-द्वेष से मुक्त सदा ही,
धीर-वीर-गंभीर।
अभय दे रहे धारे कर में,
प्रेम-दया के तीर।
परिणत होते वरदानों में,
चरण-धूलि से शाप।

राम रमणते रोम-रोम में,
राम आदि-अवसान।
राम-नाम की महिमा न्यारी,
करें संत गुणगान।
लौ न लगे यदि राम-नाम में,
पीछे हो अनुताप।

कर ले मनवा साँझ सकारे,
राम-नाम  का  जाप।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
"गीत सौंधे जिंदगी के" से

याद हमें आता रहरह कर...

याद हमें आता रह-रह कर,
अपना वही अतीत।
मधुर स्मृतियों में खो उसकी,
तिरें अधर पर गीत।

सभी पड़ोसी लगते अपने,
चाचा ताऊ बुआ।
आशीष दिया करते थे सब,
फलती सबकी दुआ।
मधुर संबंधों की फिर वही,
धारा बहे पुनीत।

गली मुहल्ले सब थे अपने,
खेले अनगिन खेल।
सुख की उन प्यारी सुधियों का,
कहाँ किसी से मेल।
नहीं द्वेष आता था मन में,
हार मिले या जीत।

आस-पास होते विद्यालय,
जाते हिलमिल साथ।
लेते थे आशीष बड़ों का,
झुका सभी को माथ।
काश पुनः दुहराएँ मिल सब,
वही पुरानी रीत।

छत से छत थीं जुड़ी सभी की,
मन से मन के तार।
चाँद-चाँदनी तारे जगमग,
लगते हीरक हार।
सधें वही सुर-ताल-लय फिर,
बहे वही संगीत।

वर्तमान की चकाचौंध से,
सिर बहुत चकराए।
खेल रहे जो खेल सभी अब,
जरा समझ न आए।
नहीं कहीं अब पड़े दिखाई,
आपस की वह प्रीत।

याद हमें आता रह-रह कर,
अपना वही अतीत।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
" गीत सौंधे जिंदगी के" से