Tuesday, 10 December 2024

शीत मगसर की...

शीत मगसर की...

जुल्म कितने ढा रही है,
शीत मगसर की।

घट रहा है मान दिन का,
घरजमाई सा।
रात बढ़ती जा रही है,
हो रही सुरसा।
बिम्ब कितने गढ़ रही है,
शीत मगसर की।

लिपट कुहरे में खड़ी है,
धूप अलसाई।
वात का लेकर तमंचा,
रात घर आई।
भाव कितने खा रही है,
शीत मगसर की।

चाँद भी सुस्ता रहा है,
ओढ़कर चादर।
झाँकता है बस कभी ही,
चोर सा छुपकर।
चीरती तन जा  रही है,
शीत मगसर की।

© सीमा अग्रवाल

मुरादाबाद ( उ.प्र.)

"भाव अरुणोदय" से



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